Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 41
________________ 32 आराधना प्रकरण अन्वय : नाणंमि, दंसणमि अ, चरणम्मि, तवंमि तह य विरअंमि पंचविहे आयारे अइआलोअणं कुणसु । अनुवाद : ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य रूप पंचाचार में बार- बार आलोचना करो (अत्यधिक मन लगाओ ) । कालविणयाई' अट्टप्पयारायारविरहिअं नाणं । जं किंचि मए' पढिअं मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥ 5 ॥ अन्वय : कालविणयाई अट्ठप्पयार आयार विरहिअं नाणं जं किंचि मए पढिअं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । अनुवाद : काल, विनयादि आठ प्रकार के आचार से रहित ज्ञान जितना मेरे द्वारा पढ़ा गया, उसके लिए मैं क्षमा याचना करता हूँ (दुष्कृत का परित्याग करता हूँ) । अन्वय नाणीण जं न दिन्नं, सइसामच्छम्मि' वत्थअसणाई | ' विहि अवन्ना, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥ 6 ॥ : सइसामच्छम्मि नाणीण वत्थअसणाई जं ण दिन्नं जा अवन्ना विहिआ य तस्स मिच्छामि दुक्कडं । अनुवाद : हमेशा सामर्थ्य के अनुसार ज्ञानीजनों को वस्त्र - असनादि न देकर जो अवज्ञा की है, उसके लिए क्षमा याचना करता हूँ । जं पंचभेअनाणस्स, निंदणं ज' इमस्स उवहासो । जो अकउं उवघाउं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥7॥ अन्वय : जं पंचभेअनाणस्स निंदणं जो इमस्स उवहासो ज उवघाउं अकउं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । अनुवाद : जिस पांच भेद वाले ज्ञान की जो निन्दा, उपहास व उपघात (मैंने) किया है, उसके लिए (मैं) क्षमा याचना करता हूँ। नाणोवगरणभूआणं', कवलिआ फलय पुत्थिआईणं" । आसायणा' कया जं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥ 8 ॥ नाणोवगरणभूआणं, कवलिआ फलयं पुत्थिआईणं जं आसायणा कया 3. (ब) सइसामच्छमि 6. (ब) 'ज' का अभाव अन्वय 1. (अ) विणयाइ 4. (ब) 'य' का अभाव 7. (ब) भूयाण 9. (ब) आसाईअणा Jain Education International 2. (ब) माए 5. (ब) विहि आय 8. (अ) फलिय (ब) फलयपुत्थयाईणं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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