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आराधना प्रकरण
अन्वय : नाणंमि, दंसणमि अ, चरणम्मि, तवंमि तह य विरअंमि पंचविहे आयारे अइआलोअणं कुणसु ।
अनुवाद : ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य रूप पंचाचार में बार- बार आलोचना करो (अत्यधिक मन लगाओ ) ।
कालविणयाई' अट्टप्पयारायारविरहिअं नाणं ।
जं किंचि मए' पढिअं मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥ 5 ॥
अन्वय : कालविणयाई अट्ठप्पयार आयार विरहिअं नाणं जं किंचि मए पढिअं तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
अनुवाद : काल, विनयादि आठ प्रकार के आचार से रहित ज्ञान जितना मेरे द्वारा पढ़ा गया, उसके लिए मैं क्षमा याचना करता हूँ (दुष्कृत का परित्याग करता हूँ) ।
अन्वय
नाणीण जं न दिन्नं, सइसामच्छम्मि' वत्थअसणाई |
' विहि
अवन्ना, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥ 6 ॥
: सइसामच्छम्मि नाणीण वत्थअसणाई जं ण दिन्नं जा अवन्ना विहिआ य तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
अनुवाद : हमेशा सामर्थ्य के अनुसार ज्ञानीजनों को वस्त्र - असनादि न देकर जो अवज्ञा की है, उसके लिए क्षमा याचना करता हूँ ।
जं पंचभेअनाणस्स, निंदणं ज' इमस्स उवहासो ।
जो अकउं उवघाउं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥7॥
अन्वय : जं पंचभेअनाणस्स निंदणं जो इमस्स उवहासो ज उवघाउं अकउं तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
अनुवाद : जिस पांच भेद वाले ज्ञान की जो निन्दा, उपहास व उपघात (मैंने) किया है, उसके लिए (मैं) क्षमा याचना करता हूँ।
नाणोवगरणभूआणं', कवलिआ फलय पुत्थिआईणं" । आसायणा' कया जं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥ 8 ॥ नाणोवगरणभूआणं, कवलिआ फलयं पुत्थिआईणं जं आसायणा कया
3. (ब) सइसामच्छमि
6. (ब) 'ज' का अभाव
अन्वय 1. (अ) विणयाइ
4. (ब) 'य' का अभाव
7. (ब) भूयाण
9. (ब) आसाईअणा
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2. (ब) माए
5. (ब) विहि आय
8. (अ) फलिय (ब) फलयपुत्थयाईणं
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