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श्री सोमसूरि विरचित आराधना प्रकरण
अथ नमः श्रीपरमात्मने'॥ नमिऊण भणइ भयवं समउचिअं समाइससु।
तत्तो वागरइ' गुरू पज्जंताराहणा' एअं॥1॥ अन्वय : एवं नमिऊण भणइ, भयवं समउचिअं समाइससु, तत्तो गुरू एअं
पज्जंताराहणा वागरइ। अनुवाद : परमात्मतत्त्व को नमस्कार हो। इस प्रकार भगवान् (महावीर) को प्रणाम
कर कहते हैं कि शास्त्र सम्मत (करणीय कार्य का ) आदेश दें। तब गुरु इस सम्पूर्ण आराधना (पर्यन्ताराधना) को कहते हैं। आलोइसु अइयारों', वयाइं उच्चरसुखमसु जीवेसु।
वोसिरसु भाविअप्पा, अट्ठारसपावगणाइं॥2॥ अन्वयः अइयारो आलोइसु वयाई उच्चरसु जीवेसु खमसु भाविअप्पां अट्ठारसपावगणाई
वोसिरसु। अनुवाद : अतिचारों की आलोचना करो, व्रतों का पालन करो, जीवों को क्षमा करो।
हे भव्यात्मा! अठारह प्रकार के पापों को गिनकर (उनका) त्याग करो। चउसरणदुक्कडगरिहणंच, सुकडाणुमोअणं कुणसु।
सुहभावणं अणसणं, पंचनमुक्कारसरणं च ॥3॥ अन्वय : चउसरणं दुक्कडगरिहणं सुकडं अणुमोअणं सुहभावणं अणसणं च
पंचनमुक्कारसरणं च। अनुवाद : चार शरण, दुष्कृत की गर्दा, सुकृत का अनुमोदन, शुभभावना, उपवास
एवं पंच नमस्कार शरणभूत को ग्रहण करो। नाणंमि दंसणंमि अ, चरणम्मि' तवंमि तह य विरअंमि।
पंचविहे आयारे, अइआलोअणं11 कुणसु ॥4॥ 1. (ब) अहँ 2. (ब) भणई 3. (ब) ०ई 4. (अ) ०णं 5. (ब) एअ 6 . (ब) आलोअसु 7. (ब) अई आरे 8. (ब) दंसणंमी 9. (अ) चरणंम्मि 10. (ब) विरिअंमि 11. (अ) आइआरालोअणं
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