Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 36
________________ आराधना प्रकरण 27 पूर्वकृत - पुव्वकय (गाथा, 55) ऋ - इ - हृदयेणं - हिअएणं (गाथा, 21) कृमि - किमि (गाथा, 15) ऋ - उ - पृथ्वी पुढवी (गाथा, 14) ऐ और औ के स्थान पर ए, तथा ओ या अव का प्रयोग। प्रस्तुत ग्रंथ में औ के स्थान पर ओ, अउ तथा ऐ के स्थान पर दोनों का ही प्रयोग हुआ है। जैसे - - ओ,अउ - चोंतीस - चउतीस (गाथा, 31) रौद्र - रउद्द (गाथा, 35) चौबीस - चोबीस (गाथा, 54). - ए पैशुन्यम् - पेसुन्नं (गाथा, 29) 3. क, ग, च, ज, त, द, प, य वर्गों के शब्द के मध्य होने पर विकल्प से लोप हो जाता है, तथा विकल्प से शेष अ को य श्रुति भी हो जाती है। यथा - क का लोप नरनारक - नरनारएण (गाथा, 57) लोके - लोए (गाथा, 55) च का लोप तथा य श्रुति - अतिचारो अइयारो (गाथा, 2) आचारे आयारे (गाथा, 4) जलचर जलयर (गाथा, 18) थलयर (गाथा, 18) खेचर खयर (गाथा, 18) वचनं वयणं (गाथा, 19) रइअं (गाथा, 70) ज का लोप पूजा पूआ (गाथा, 10) रायसिंहो (गाथा, 68) त का लोप भणति भणइ (गाथा, 1) समिति समिइ (गाथा, 13) पूतर पूअर (गाथा, 15) भाषितम् - भासिअं (गाथा, 19) सुअं (गाथा, 58) गति - गइ ( गाथा, 60) थलचर . रचितं राजसिंह - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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