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आराधना प्रकरण
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पूर्वकृत - पुव्वकय (गाथा, 55) ऋ - इ - हृदयेणं - हिअएणं (गाथा, 21)
कृमि - किमि (गाथा, 15) ऋ - उ - पृथ्वी पुढवी (गाथा, 14)
ऐ और औ के स्थान पर ए, तथा ओ या अव का प्रयोग। प्रस्तुत ग्रंथ में औ के स्थान पर ओ, अउ तथा ऐ के स्थान पर दोनों का ही प्रयोग हुआ है। जैसे - - ओ,अउ - चोंतीस - चउतीस (गाथा, 31)
रौद्र - रउद्द (गाथा, 35)
चौबीस - चोबीस (गाथा, 54). - ए पैशुन्यम् - पेसुन्नं (गाथा, 29) 3. क, ग, च, ज, त, द, प, य वर्गों के शब्द के मध्य होने पर विकल्प से लोप हो जाता है, तथा विकल्प से शेष अ को य श्रुति भी हो जाती है। यथा - क का लोप
नरनारक - नरनारएण (गाथा, 57)
लोके - लोए (गाथा, 55) च का लोप तथा य श्रुति - अतिचारो अइयारो (गाथा, 2)
आचारे
आयारे (गाथा, 4) जलचर जलयर (गाथा, 18)
थलयर (गाथा, 18) खेचर
खयर (गाथा, 18) वचनं
वयणं (गाथा, 19)
रइअं (गाथा, 70) ज का लोप
पूजा
पूआ (गाथा, 10)
रायसिंहो (गाथा, 68) त का लोप
भणति
भणइ (गाथा, 1) समिति समिइ (गाथा, 13) पूतर
पूअर (गाथा, 15) भाषितम् - भासिअं (गाथा, 19)
सुअं (गाथा, 58) गति - गइ ( गाथा, 60)
थलचर
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रचितं
राजसिंह
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