Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 37
________________ पाप तप उपहास यथा येन 28 आराधेना प्रकरण करतलगतं - करयलगयं (गाथा, 62.). रत्नवती - रयणवई (गाथा, 69) द का लोप - निःशंकितादि - निस्संकियाई (गाथा, 8) गोपदं - गोपयं (गाथा, 66) __प का लोप एवं उसके स्थान पर व - पाव (गाथा, 2) तवंमि (गाथा, 4) उवहासो (गाथा,7) उपाध्याय - उवज्झाया (गाथा, 53) य का लोप तथा य के स्थान पर ज - योगेषु जोगेसु (गाथा, 25) जहा (गाथा, 26) युक्त - जुआ (गाथा, 31) जेण (गाथा, 58) 4. संयुक्त व्यंजनों के पूर्ववर्ती दीर्घ स्वर ह्रस्व होते हैं। यथा - भव्यात्मा भविअप्पा पूर्व - . पुव्व (गाथा, 27) उपाध्याय - उवज्झाया (गाथा, 53) 5. प्राकृत में विसर्ग नहीं होता। प्रायः इसके स्थान पर ओ हो जाता है। यथा - सः धर्मः - सो धम्मो (गाथा, 43) चित्तः - चित्तो (गाथा, 47) कुमार्गः - कुमग्गो (गाथा, 49) बहुमानः - बहुमाणो (गाथा, 53) वधः - वहो (गाथा, 61) परायणः - परायणो (गाथा,68) 6. अन्तिम म् अनुनाशिक या अनुस्वार में बदल जाता है। यथा - समोचितम् - समउचिअं (गाथा, 1) नाणं (गाथा, 5) चरणम् - चरणं (गाथा, 13) ज्ञानम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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