Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 27
________________ आराधना प्रकरण आचार्य विश्वनाथ ने रस की अनेक विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उसे इस कारिका में प्रस्तुत किया है - - 18 सत्त्वोद्रेकादखंडस्वप्रकाशानंदचिन्मयः । वेद्यांतर स्पर्शशून्यब्रह्मानन्दसहोदरः ॥ लोकोत्तरचमत्कारप्राणः कैश्चित्प्रमातृभिः । स्वाकारावदभिन्नत्वेनायमास्वाद्यते रसः ॥ ( सा.द. 3 / 2 ) भारतीय आचार्यों ने रस को अलौकिक कहा है अर्थात् रसानंद ही ब्रह्मानंद है। रस मन की आनंदमयी चेतना है तथा इसके द्वारा ही आनंदानुभूति होती है । भरत और भरत से पूर्व की परम्परा में केवल आठ रसों का. ही वर्णन किया गया है । कालिदास ने भी आठ रसों का वर्णन किया है । शान्त रस को भरत ने अभिनेय मानकर उसका निरूपण नहीं किया । सर्वप्रथम उद्भट ने नौ रसों (श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत) का वर्णन किया है, जो निम्न कारिका में उद्धत है 4/4) श्रृंगारहास्यकरुणरौद्र वीरभयानकाः । वीभत्साद्भुतशांताश्च नव नाट्ये रसाः स्मृताः ॥ (काव्यालंकारसारसंग्रह, सम्पूर्ण आराधना प्रकरण में शान्त रस का ही प्रयोग हुआ है। शांत रस शम (निर्वेद) स्थायी भाव युक्त एवं मोक्ष प्रवर्तक होता है। उसकी उत्पत्ति तत्त्वज्ञान, वैराग्य एवं चित्तशुद्धि आदि विभावों के द्वारा होती है । उसका अभिनय, यम, नियम, अध्यात्म, ध्यान, धारणा, उपासना, सभी प्राणियों के प्रति दया आदि अनुभावों के द्वारा होता है। निर्वेद, स्मृति धृति, सर्वश्रम, शौच, स्तंभ, रोमांच आदि उसके व्यभिचारी भाव हैं। यह रस मोक्ष तथा आध्यात्मिक ज्ञान में प्रवृत्त करने वाला तथा तत्त्वज्ञान के कारणों से युक्त होता है । शान्त रस के उपर्युक्त विवेचन का अध्ययन करं आराधना प्रकरण के प्रतिपाद्य विषय पर दृष्टिपात करते हैं तो इस रस का स्वरूप व फल स्पष्ट रूप से दृष्टिगत हो जाता है । सम्पूर्ण ग्रंथ धर्माराधना विषयक होने से शांत रस युक्त है। इसी आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि इस ग्रंथ में शान्तरस का प्रयोग हुआ है। इसके उदाहरण में लगभग सम्पूर्ण आराधना ग्रंथ को लिया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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