Book Title: Apbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak Author(s): Premchand Jain Publisher: Sohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti View full book textPage 9
________________ प्राक्कथन अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक डा० प्रेमचन्द्र जैन का विवेचनापूर्ण ग्रंथ है। अस्पष्ट रूप से बराबर हो अनुभव किया गया है कि अपभ्रंश कथाकाव्यों की परंपरा का विकास ही हिन्दी के प्रेमाख्यानक काव्य हैं। परन्तु दो कारणों से इसे स्पष्ट रूप से प्रमाणित करने में बाधा पड़ी है। एक तो यह है कि अपभ्रंश के कथाकाव्य अधिकतर जैन कवियों की रचना है और यह मान लिया गया है कि वे धार्मिक ग्रंथ हैं। दूसरा यह है कि हिन्दी में पाये जाने वाले प्रेमाख्यानक नामक काव्य अधिकतर मुसलमान कवियों के हैं और उनमें पारसी कविता के प्रभाव को संभावना अधिक है। परन्तु ये दोनों बातें एक हद तक ही सही हैं । इन दोनों प्रकार के काव्यों का बारीकी से अध्ययन आवश्यक था। किस प्रकार की कथानक-रूढ़ियों का दोनों प्रकार के काव्यों में प्रयोग हुआ है और किस हद तक दोनों प्रकार के काव्यों में काव्य की अन्यान्य रूढ़ियों और अभिप्रायों का आश्रय लिया गया है, यह जाने बिना इनकी प्रकृति की ठीक-ठीक जानकारी नहीं हो सकती। सौभाग्य से हमें कुछ ऐसे भी अपभ्रंश के कथाकाव्य मिले हैं जो जैन परंपरा के नहीं कहे जा सकते । और कुछ ऐसे भी प्रेमाख्यानक काव्य मिले हैं जो मुसलमान कवियों से · भिन्न सम्प्रदाय के कवियों द्वारा लिखे गये हैं। इन सबकी सावधानी से परीक्षा की जानी चाहिये । मुझे प्रसन्नता है कि आयुष्मान् डा० प्रेमचन्द्र जी ने हिन्दी-अपभ्रंश के इन कथाकाव्यों का परिश्रमपूर्वक परीक्षण किया है। : उनमें पायी जाने वाली कथानकगत एवं काव्यगत रूढ़ियों का, विभिन्न श्रेणियों के अभिप्रायों का तथा प्रतीकों का बहुत अच्छा विश्लेषण किया है और एक लम्बी परम्परा का संधान पाया है। इस विवेचन से हिन्दी साहित्य के अनुशीलन को एक नयी दिशा मिलेगी। मुझे आशा है कि साहित्य-प्रेमी इसका स्वागत करेंगे। मैं आयुष्मान् डा० प्रेमचन्द्र जैन को उनको परिश्रमपूर्वक को गयी खोज के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ। वाराणसी हजारीप्रसाद द्विवेदीPage Navigation
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