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अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [प्रथमो वर्गः हुए परिसा-परिपद् निग्गया-उनकी धर्म-कथा सुनने के लिये नगर से निकली जाव-यावत्-और कथा सुनकर फिर नगर को वापिस चली गई । इस के अनन्तर जंबू-जम्बू स्वामी पज्जुवासति-अच्छी तरह सेवा करता हुआ एवं-इस प्रकार वयासी-कहने लगा णं-वाक्यालङ्कार के लिये है भंते ! हे भगवन् ' जइ-यदि संपत्तेणं-मोक्ष को प्राप्त हुए जाव-और अन्य सब गुणों से परिपूर्ण समणेणं-श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अहमस्स-आठवें अंगस्स-अङ्ग अंतगडदसाणं-अन्तकृद्-दशा का अयमद्वे-यह अर्थ पएणत्ते-प्रतिपादन किया है तो फिर भंते -हे भगवन् । नवमस्स-नौवें अंगस्स-अंग अणुत्तरोववाइयदसाणं-अनुत्तरोपपातिक दशा का जाव-'नमो त्थु णं' के गुणों से युक्त और संपत्तेणं-मोक्ष को प्राप्त हुए श्री भगवान ने के-कौन-सा अटे-अर्थ पएणत्ते-प्रतिपादन किया है ?
मूलार्थ-उस काल और उस समय में एक राजगृह नगर था । (उसके वाहर गुणशिलक नाम के चैत्य में) आर्य सुधर्मा विराजमान हुए । (यह सुनकर) नगर की परिषद् ( उनके पास धर्म-कथा सुनने के लिये ) गई (और धर्म सुनकर नगर को वापिस चली गई ) । जम्बू खामी अच्छी प्रकार उनकी सेवा करते हुए इस प्रकार कहने लगे "हे भगवन् ! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने आठवें अङ्ग, अन्तकृद्-दशा का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन् ! नौवं अङ्ग, अनुत्तरोपपातिक-दशा का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है।
टीका-सूत्रों के संख्या-बद्ध क्रम में अङ्गकृत्-सूत्र आठवां और अनुत्तरोपपातिकसूत्र नौवां अङ्ग है । अतः अङ्गकृत्-सूत्र के अनन्तर ही इसका आना सिद्ध है । आठवे अग, अङ्गकृत्-सूत्र मे उन जीवों का वर्णन किया है, जो मूक केवली हुए है अर्थात् जिन्होंने स्वयं तो केवल-ज्ञान की प्राप्ति की किन्तु आयु के क्षीण होने के कारण दूमरी भव्य आत्माओं पर अपने उस ज्ञान को प्रकाश नहीं कर सके । जैसे गजमुकुमार आदि । इस नौवे अङ्ग मे उन व्यक्तियों के जीवन का दिग्दर्शन कगया गया है, जो अपनी मनुष्य-जीवन की लीला को समाप्त कर पाच अनुत्तरोपपातिक विमानों में उत्पन्न हुए है।
इस सूत्र की उत्थानिका श्री जम्बू स्वामी से वर्णन की गई है । जव श्री