Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 65
________________ - AAAAAAAAAAAAA. AHARAI वृतीयो वर्गः] भापाटीकासहितम् । ___ धन्नस्स बाहाणं० से जहानामते समि-संगलियाति वा बाहाया-संगलियाति वा अगस्थिय-संगलियाति वा एवामेव० । धन्नस्स हत्थाणं से जहा० सुक्क-छगणियाति वा वड-पत्तेति वा पलास-पत्तेति वा एवामेव० । धन्नस्स हत्थंगुलियाणं० से जहा० कलाय-संगलियाति वा मुरग० मास० तरुणिया छिन्ना आयवे दिन्ना सुक्का समाणी एवामेव० । धन्यस्य बाह्वोः० अथ यथानामका शमी-सङ्गलिकेति वा, बाहाया-सङ्गलिकेति वा अगस्तिक-सङ्गलिकेति वा, एवमेव० । धन्यस्य हस्तयोः अथ यथानामका शुष्क-छगणिकेति वा वटपत्रमिति वा पलाश-पत्रमिति वा, एवमेव० । धन्यस्य हस्तागुलिकानाम्० अथ यथानामका कलाय-सङ्गलिकेति वा मुद्ग० माष० तरुणिका छिन्नातपे दत्ता सती, एवमेव०।। पदार्थान्वयः-धन्नस्स-धन्य अनगार की वाहाणं-भुजाओं की तप से इतनी सुन्दरता हुई से जहानामते-जैसे समिसंगलियाति वा-शमी वृक्ष की फली अथवा पाहायासंगलियाति वा-बाहाया-एक वृक्ष विशेप की फली अथवा अगस्थियसंगलियाति वा-अगस्तिक नामक वृक्ष की फली सूखकर हो जाती है एवामेवइसी प्रकार उनकी भुजाएं भी मांस और रुधिर के अभाव से सूख गई थीं। धनस्स-धन्य अनगार के हत्थाणं-हाथों की सुन्दरता इस प्रकार हो गई थी से जहा०जैसे सुक्क छगणियाति वा-सूखा गोबर होता है अथवा वडपत्तेति वा-वट वृक्ष के सूखे हुए पत्ते होते हैं अथवा पलासपत्तेति वा-पलाश के सूखे हुए पत्ते होते हैं एवामेव०-उनके हाथों से भी मांस और रुधिर सूख गया था । धन्नस्स-धन्य अनगार की हत्थंगुलियाणं०-हाथ की अंगुलियों का तप से ऐसा लावण्य हुआ से जहा

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