Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 99
________________ ९६ ] ___ अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [ तृतीयो वर्गः शरण देने वाले हैं चक्खुदएणं लोगों को ज्ञान-चक्षु देने वाले हैं धम्मदएणंउनको श्रुत और चारित्र रूप धर्म देने वाले हैं मग्गदएणं-और अज्ञान रूपी अन्धकार से मुक्ति-मार्ग दिखाने वाले हैं धम्मदेसएणं-धर्मोपदेशक हैं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा-श्रेष्ठ धर्म के एकमात्र चक्रवर्ती हैं अप्पडिहय-अप्रतिहत वर-श्रेष्ठ नाण-ज्ञान दंसण-दर्शन धरेणं-धारण करने वाले हैं जिणेणं-राग और द्वेष को जीतने वाले हैं जाणएणं-छद्मस्थ ज्ञान-चतुष्टय को जानने वाले हैं बुद्धेणं-बुद्ध हैं अर्थात् जीव आदि पदार्थों को जानने वाले हैं बोहएणं-औरों को बोध कराने वाले हैं मोकेणं-बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से मुक्त हैं मोयएणं-अन्य जीवों को इस परिग्रह से मुक्त कराने वाले हैं तिनेणं-संसार-रूपी सागर को पार करने वाले हैं तारयेण और उपदेश के द्वारा औरों को इससे पार कराने वाले हैं सिवं-सर्वथा कल्याण-रूप अयलं-नित्य स्थिर अरुयं-शारीरिक और मानसिक रोग और व्यथाओं से रहित अणंत-अन्त-रहित अक्खयं-कभी भी नाश न होने वाले अव्वाबाह-पीडा अर्थात् सब प्रकार के दुःखों से रहित अपुनरावत्तयंसांसारिक जन्म-मरण के चक्र से रहित सिद्धिगति-सिद्ध-गति नामधेयं-नाम वाले ठाणं-स्थान को संपत्तेणं-प्राप्त हुए उन्होंने अणुत्तरोववाइयदसाणं-अनुत्तरोपपातिकदशा के तच्चस्स-तृतीय वग्गस्स-वर्ग का अयं-यह अहे-अर्थ पएणत्तेप्रतिपादन किया है सूत्रं ६-छठा सूत्र समाप्त हुआ अणुत्तरोववाइयदसातो-अनुत्तरोपपातिकदशा समत्तातो-समाप्त हुई अणुत्तरोववाइयदसा णाम-अनुत्तरोपपातिकदशा नाम का सुत्तं-सूत्र रूप नवममंग-नौवां अङ्ग समत्तं-समाप्त हुआ। __ मूलार्थ हे जम्बू ! इस प्रकार धर्म-प्रवर्तक, चार तीर्थ स्थापन करने वाले, म्वय बुद्ध, लोक-नाथ, लोकों को प्रकाशित और प्रदीप्त करने वाले, अभय प्रदान करने वाले, शरण देने वाले, ज्ञान-चनु प्रदान करने वाले, मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले, धर्म देने वाले, धर्मोपदेशक, धर्मवर-चतुरन्त-चक्रवर्ती, अनभिभूत श्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन वाले, राग-द्वेप के जीतने वाले, ज्ञापक, बुद्ध, बोधक, मुक्त, मोचक, स्वय संमार-मागर से तैग्ने वाले और दूसरों को तगने वाले, कल्याणरूप, नित्य स्थिर, अन्त-रहित, विनाश-रहित, शारीरिक और मानसिक आधिव्याधि-रहित, पुन: पुन: मांसारिक जन्म-मरण से रहित सिद्ध-गति नामक स्थान को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिकदशा के

Loading...

Page Navigation
1 ... 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118