Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 113
________________ अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् ५३ ४६ पिता-पिता २७ | वीणा-छिड्डे-वीणा का छेद पिया-पिता ६१ | बुद्धेणं चुद्व, ज्ञानवान् पुच्छति-पूछता है ८० बोद्धन्वे-जानना चाहिए पुट्टिले पृष्टिमायी कुमार ३२ बोरी-करील्ल बेर की कोंपल पुत्ते-पुत्र ३५, ८६ | वोहएणं-दूसरों को वोध कराने वाले ६५ पुनसेणे-पुण्यसेन कुमार २४ | भंते हे भगवन् ! ३,६, ११२, १३, पुरिससेणे-पुरुषसेन कुमार | २४, २६, २७, ३२, ३४', ४२, ७२, पुबरत्तावरत्तकाल-समयंसि-मध्य रात्रि | ८०,८६,६० के समय में ६० भगवं-भगवान् १३, ३६, ४२, ४६, ७१, पुव्यरत्तावरत्तकाले-मध्य रात्रि में ७२, ७३', ८० पुवाणुपुब्बीए-क्रम से भगवंता-भगवान् १३ पेढालपुत्ते-पेढालपुत्र कुमार | भगवता भगवान् ने ४२, ६४ पेल्लए-पेल्लक कुमार भगवतो भगवान् का ४६,७३, ८६ पोरिसीए-पौरुपी, प्रहर, दिन या रात भगवया भगवान् ने के चौथे भाग में | भजणयकभल्ले-चने आदि भूनने की फुट्टतेहिं बडे जोर से बजते हुए (मृदङ्ग कढाई आदि वाद्यो के नाद से युक्त) ३८ | भत्तंभात बंभयारीब्रह्मचारी | भद्द-भद्रा सार्थवाहिनी को बत्ती(त्ति)सम्बत्तीस १३, भद्दा-भद्रा नाम वाली ३५, बत्तीसाप-बत्तीस भद्दाप-भद्रा मार्थवाहिनी का बत्तीसाओ-बत्तीस भहाओ-भद्रा नाम वाली बद्धीसग छिट्टेबहीमक नामक भन्नति कहा जाता है का छेद ६४ । भवणं भवन बहवे बहुत से । भवित्ता होकर ४२ वहिया बाहर । भाणियब्वं, व्या कहना चाहिए २०, ६१ बह-बहुत ६० भावेमाणे-भावना करते हुए ४२,४३, वारसम्बारह २० । बालत्तणंचालकपन २७, भासंम्भापा, बोल यावत्तरि बहत्तर ३५ मास-गसि-पलिन्छन्न-गस के ढेर में बाहाण-मुजाना की ५ टकी हुई चाहाया संगलियानाहाय नाम वाले वृक्ष भासिम्मामि-महँगा विगेप की फनी VE ' भुस्पग-मृन्य में याहार्दि-भुजाओं में ___६ . भोग-समन्ध.न्ध भोग भोगने में समर्थ । बिलमिव बिल के समान १६, ७,८६, ५. ७ W w us

Loading...

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118