Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 112
________________ १० शब्दार्थ-कोष पडिगए-चला गया । की पडिगओ-चला गया ६० पब्वतिते-प्रव्रजित हुआ ३६, ४२, ८६ पडिगता-चली गई ६० पब्वयामि-प्रव्रजित होता हूँ, दीक्षा ग्रहण पडिगया चली गई ७२ करता हूँ ३६ पडिगाहेति ग्रहण करता है ४६ | पव्वाय-वदण-कमले जिसका कमलरूपी । पडिग्गहित्तते ग्रहण करने के लिए ४२ मुख मुरझा गया था पडिणिक्खमति-बाहर निकलता है ४६,४६ पाउणित्ता-पालन कर १२,१३ पडिदसेति-दिखाता है ४६ पाउन्भूते-प्रकट हुआ पडिवंधं-प्रतिबन्ध, विन, देरी ४२ | पांसुलि-कडएहिं पसलियों की पंक्ति से ६७ पढम-छठ्ठ-क्खमण पारणगंसि-पहले पांसुलिय-कडाणं पार्श्वभाग की अस्थियों - पष्ठ व्रत (वेले) के पारण में ४५ । (हड्डियों ) के कटकों की पढमस्स-पहले ८१, ११,२०,२४,३४,८१ पाणं पानी पढमाए-पहली ४५ | पाणावली-पाण-एक प्रकार के वर्तनों पढमे पहले (अध्ययन) में २० की पक्ति पण्णग-भूतेणं सर्प के समान ४६ | पाणिं हाथ पएण(न)त्ता प्रतिपादन किये हैं ८, ११, पात-जघोरुण-पैर, जड्डा और ऊरुओं से ६७ १३, २६, ३२,८०, ११ पादाणं-पैरों की ५१, ७२ पएण(न)त्ते प्रतिपादन किया है, कहा है। पाभातिय-तारिगा-प्रातःकाल का तारा ६४ ३२, ११, २०, २४, २७२, ३२२, पायंगुलियाणं-पैरों की अँगुलियों की ५१ ३४,८१, ६५ पायगलियातो-पैरों की अँगलियाँ ५१ पण्णा(ना)यंति-पहचाने जाते हैं ५१, ६४ पाय-चारेण पैदल पत्त-चीवराई-पात्र और वस्त्रों को १३ पाया पैर पयययाए=अधिक यन वाली ४५ पारणयंसि-पारण करने पर, पारण के परिनिव्वाण-वत्तियं-परिनिर्वाण प्रत्य समय ४२ , किसी की मृत्यु के उपलक्ष्य में पासायवडि(डे)सए, ते श्रेष्ठ-सर्वोत्तम किया जाने वाला १३ | महल में १२, ३७,३८, ७२, ८६ परियातो सयम-वृत्ति या साधु-वृत्ति का । पि-भी पालन २७, ६० पिटि-करंडग-संधीहि-पृष्ठ-करण्डक परिवसइ-रहती है (थी) (पीठ के उन्नत प्रदेशों) की सन्धियो परिवसतित्रहता है ८६ से परिमा-परिपद्, श्रोतृ-गण ३,३६, ७१, पिटि-करंडयाणं-पीठ की हड़ियों के उन्नत ७२२,६० प्रदेशों की पलास-पत्ते-पलाश (ढाक) का पत्ता ५६,६१ पिट्टि-मवस्सिएणं-पीठ के साथ मिले हुए ६७ पबहने प्रत्रजित हुआ, माधु-वृत्ति धारण पिट्टि माइया पृष्टिमातृक कुमार ३६ ४२

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