Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 114
________________ शब्दार्थ-कोष ४२, ८६ ७३, ६० मंस-सोणियत्ताए-मास और रुधिर के | मुंडावली-खम्भों की पक्ति कारण ५१, ६४ मुडे-मुण्डित मग्ग-दएणं-मुक्ति-मार्ग दिखाने वाले ६४ | मुग्ग-संगलियामूंग की फली ५१,५७ मज्मे-बीच में ___३७ मुच्छिया भूच्छित ममं मेरा १३ | मूला-छल्लिया-मूली का छिलका ६४ मयालि-मयालि कुमार ८ मेहो 'ज्ञाता धर्मकथाङ्गसूत्र' में वर्णित मयूर-पोरा-मोर के पर्व (सन्धि-स्थान) ५३ / मेघ कुमार महताबडे भारी (समारोह से) ३६ | मोकेणं स्वयं मुक्त हुए महव्वले महाबल कुमार, जिसका वर्णन मोयएण-दूसरों को ससार-सागर से ___'भगवती सूत्र' में किया गया है ३५, ३६ | मुक्ति दिलाने वाले महा-णिजरतराए-बड़े कर्मों की निर्जरा य-और ८, ३२२, ४२,८० करने वाला ७२ रामपुत्ते-रामपुत्र कुमार महा दुक्कर-कारए-अत्यन्त दुष्कर तप । रायगिहे-राजगृह नाम का नगर ३, १२, करने वाला ७२ २०, २७, ७१,१०, ११२ महादुमसेणमाती=महाद्रुमसेन आदि २७ राया-राजा १२, २०, २७, ३५, ७१, ७२, महादुमसेणे-महाद्रुमसेन कुमार २४ महाविदेहे-महाविदेह (क्षेत्र) में १३,८०,६१२ रिद्ध(द्धि)स्थिमिय-समिद्धे, द्धा-धन महावीर-धर्म के प्रवर्तक श्री श्रमण भग- धान्य से युक्त, भयरहित और सब ___वान् महावीर स्वामी को ४२, ७२,७३२ प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त १२, ३४ महावीरस्स-श्री महावीर स्वामी का ४६, लट्टदते-लष्टदन्त कुमार ८, २० ७३, ८६ लभति-प्राप्त करता है ४५२,४६ महावीरे-श्री महावीर स्वामी ३६, ४६, ७१ लाउय-फले-तुम्बे का फल महावीरेण श्री महावीर से ४३, ६४ लुक्ख-रुक्ष महासीहसेणे महासिहसेन कुमार २४ लोग-नाहेण-तीनों लोकों के स्वामी ६४ महासेणे-महासेन कुमार २४ | लोग-पजोयगरेण लोक उद्योतकर मा नही, निषेधार्थक अव्यय (प्रकाशित करने वाले) ६४ माणुस्सए मनुष्य सम्बन्धी ७३ लोग-प्पदीवेणं लोकों में दीपक के मातुलुग-पेसिया मातुलुङ्ग-वीजपूरक की समान प्रकाश करने वाले ६४ फॉक ६३ / वंदति-वन्दना करता है ४२, ७२, ७३ माया तामाता २०, २७ वग्गस्सन्वर्ग का ८, ११, २०, २४ २७, मासं-एक मास ३२, ६५ मास संगलिया-माप-उडद की फली ५१,५६ / वग्गा मासिया-एक मास की ८० वट्टयावली-लाख आदि के बने हुए बच्चों मिलायमाणी मुरझाती हुई ५१ के खिलौनों की पंक्ति

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