Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 109
________________ अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् उसका आक्षेप सर्वत्र किया गया है ३२, । णाणत्त-नानात्व, माता-पिता आदि का ८, ११, १२, १३, २०,२४, २६,२७, वर्णन ३२, ३४, ३५, ३७, ३८२, ३६', णाम-नाम वाली ४२, ४५३, ४६, ४६, ५३, ५५, ६४, णाम-नाम वाला ६७, ७२,८०,८१,८६, ६० णिक्खंतो-गृहस्थ छोड़कर दीक्षित होगया १६ जावजीवाए जीवन पर्यन्त ४२,४३ णिक्खमण-निष्क्रमण, दीक्षित होना ३६, २६ जाहे-जब ३६ णिग्गओ निकला जिणेणं-राग-द्वेप को सर्वथा जीतने वाले 'णिग्गता-निकली 'जिन' भगवान् ने ६५ णिग्गते-निकला जियसत्तुं जितशत्रु राजा को ३६ णिग्गतो निकला जियसत्तू-जितशत्रु नाम का राजा ३५, ३६ । णिग्गया-निकली जिभाए-जिह्वा की, जीभ की हिम्मंस-मांस-रहित जीवेण-जीव की शक्ति से ६७ णिम्मंसा-मांस-रहित जीहा-जिह्वा. जीभ णो-नही, निषेधार्थक अव्वय जेणेव-जिसी ओर ४५, ७२', ७३२ जोइज्जमाणेहिं दिखाई देती हुई ६७ . तए-इसके अनन्तर ठाणं-स्थान को १५ तओ-तीन ठिती स्थिति १३२,८०,६१ तं-उस ४२१,८०,८६ ढेणालिया-जंघा ढेणिक पक्षी की जडा ५३ तंजहाजेसे ८, २४, ३२, ३५ ढणालिया-पोरा-ढेणिक पक्षी के सन्धि- तच्चस्स-तीसरे ३२, ३४, ६५ स्थान । ५३ तते-इमके अनन्तर ८, १३, ३६,४२, णं-वाक्यालङ्कार के लिए अव्यय हैं, ४५२, ४६,४६', ७२, ७३,८६,६० जिसका इम ग्रन्थ में हमने 'नु' से , ततो हमके अनन्तर सस्कृत अनुवाद किया है ३,८. ११ तत्थ-वहाँ १३, २४, २६, ३२, ३४ ३५ ३७. तरुणए कोमल ३६, ४२६, ४५, ४६, १६.५१, तरणग-एलालुए-कोमल आलू ६४,६७,७२,७३.८०.८६.६० तरणग-लाउएकोमल तुन्या । ए-नही, निषेधार्थक अव्यय ४२. ४५, ६४ तरणिने-छोटी. कोमन्न गगरी-नगरी ३४.४५ तरणिया-छोटी, कोमल ५१ ५. ६३ एगरीए-नगरी में ६ तव-तेग रणगरीनो-नगरी से ४६, ४६ तब नेय-सिरीए-तप और नेज की नन्मी एगरे-नगर १२, २७ site से गमंसति-नमस्कार करना है १२, ७२, ७३ नवम्ब-लावन्न-जप रे कारण उत्पन्न हो राबरं-विपता-बोधक अव्यय ४ मुन्दरना is min o n

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