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शब्दार्थ-कोष
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७३
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चक्खु-दएणं-ज्ञान-चक्षु प्रदान करने वाले ६४ । जति देखो जइ चम्म-च्छिरत्ताए-चमडा और शिराओं जधा-जैसे के कारण
| जमाली-जमालि कुमार चरेमाणे-चलते हुए, विहार करते हुए ७२ | जम्म-जन्म चलंतेहि-चलते हुए, हिलते हुए ६७ जम्म-जीविय-फले जन्म और जीवन .. चिंतणा-धर्म-चिन्ता
का फल चिंता-चिन्ता
जयंते-जयन्त विमान में २०, २७ चिट्ठति-स्थित है, रहता है, रहती है ४६,५१,
जयण-घडण-जोग चरित्ते-जयन (प्राप्त ५३, ६४, ६७, ७२ |
योगों में उद्यम ), घटन (अप्राप्त योगो चित्त-कटरे-गौ के चरने के कुएड के
की प्राप्ति का उद्यम) और योग नीचे का हिस्सा
५६
(मन आदि इन्द्रियों का सयम) से चेतिए,ते-चैत्य, उद्यान, बागीचा १२, २७,
युक्त चरित्र वाला
४६
जरग्ग-ओवाणहा-सूखी जूती ५१ चेल्लणाए-चेल्लणा देवी के २० जरग्ग-पाद-बूढे बैल का पैर (खुर) ५५ चेव (चऽइव)=ठीक ही १६, ४२५, ५१, जहा=जैसा, जैसे १२२,२०,२७, ३५, ३६%,
६४, ७२, ७३, ८६ ४५,४६, ४६, ६३, ६४, ६७, ८०, चोदसण्हं-चौदह का
८६,६०
| जहा णामए,ते यथा-नामक, जैसी,जैसा ५१, छटुं-छटेण-पष्ठ पष्ठ तप से, जिस तप में उपवास ६ भक्त या दो दिन के बाद
__५३, ५५, ५६, ६१, ६७ खोला जाता है
४२,४३
जा जैसी छट्टस्सवि-छठे (भक्त) पर भी ४२
जाणएणं ( छद्मस्थ ज्ञान-चतुष्टय को ) छत्त-चामरातो-छत्र और चामरों से ३६
जानने वाले छमासाछ महीने
जाणूणं-जानुओं का छिन्ना-तोडी हुई
जाणेत्ताजानकर
१३, ३७ ५१, ५६
| १ जाते बालक जइ,ति-यदि ३, ८, ११, २४, २६, ३२,
| २ जाते-हो गया
३६, ८६ ज-जिम
४२,८६
जामेव जिसी जघाण जबाओं का
| जालिं-जालि अनगार को जवू-जम्बू स्वामी को
| जालिम्जालि कुमार या अनगार ८, २७ जंबू-जम्बू स्वामी, मुवर्मा स्वामी के जालिस्स-जालि की
१३, २७ मुरय शिष्य ३, ८, १२, २४, ३२, ३४,
| जालीकुमारो जालिकुमार
८०,८६,६४/ जालीवि-जालिकुमार भी जगणीभोमाताएँ
| जाव-यावत्, पहले कही हुई बात को जणवय-विहारं देश में विहार ४६,८६ फिर से न दुहराकर इस शब्द से
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