Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ नमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स "5-09-2--- अनुत्तरोपपातिकदशासून शब्दार्थ-कोष अ-और ३२ । अझयणे अध्ययन अंगस्स-अङ्ग का ३, | अट्ठ-आठ अंगाई-अगों का १६,४६, ८६ | अट्टओ-आठ-आठ अंतं अन्त, देहावसान, मृत्यु २७ / अट्टाहं आठ के (विपय में) अतिए, ते समीप, पास, नज़दीक ३६, ४६, | अट्ठमस्स-आठवें का ७२, ७३, ८६ अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए-हड्डी, चमड़ा और अंतेवासी-शिष्य १३ नसों से ५१, ६४ अंव-गट्रिया आम की गुठली ६१ | अट्री-अस्थि, हड्डी अंव-पेसिया आम की फाँक | अटे-अर्थ ३०, ११, २०, २४२, २७९,३२२, अंबाडग-पेसिया आम्रातक-अम्बाड़े की ३४, ७३, ८१, ६५ फाँक अडमाणे-घूमता हुआ (भिक्षा के लिए) ४५ अकलुसे क्रोध आदि कलुपों से रहित ४६ | अड्डा-ऋद्धि अर्थात् ऐश्वर्य वाली ३५, ८६ अक्खयं-कभी नाश न होने वाला ६५ | अणंतं अन्त-रहित, कभी नाश न होने अक्खसुत्त-माला-रुद्राक्ष की माला ६७ वाला . ६५ अगत्थिय-संगलिया-अगस्तिक वृक्ष की अणगारं-अनगार'को '.८, १३, ७३ फली | अणगारस्स-अनगार-माया-ममता को अग्ग-हत्थेहि हाथ के पञ्जो से ६७ | | छोड़कर घर का त्याग करने वाले अच्छीण-ऑखों का साधु का ५१, ६४, ७२, ८० अज-आर्य | अणगारे अनगार ८, १३, ३६, ४२२, ४५, अज्झयणस्स-अध्ययन का ११, ३४,८१ ४६,४६, ६७, ७२,७३, ८६ अज्झत्यणा-अध्ययन ८, ११, २४, २६, | अणझोववरणे-राग-द्वेप से रहित, ___३२, ३४ विपयों में अनासक्त

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118