Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 72
________________ तृतीयो वर्गः] मापार्टीकासहितम् । [१९ %ARAN कोश भीनर घुम गये थे जीव-जीवन को जीवेणं-जीव की शक्ति से गच्छति-चलाता था न कि शरीर की शक्ति से जीवं जीवणं चिट्टति-जीव की ही शक्ति से खड़ा होना था मामं-भापा भासिस्मामि-कहूंगा इति-विचार मात्र से भी गिलाति-ग्लान हो जाता था से-अय जहा-जैसे खंदनी-स्क्रन्धक जाव-यावत भामगसिपलिच्छनेभस्म की राशि से ढके हुए हुयामणे-हुनागन-अग्नि के इव-पमान तवेणं-तप तेएणं-तेज और तवतेयसिरीए-तप और तेज की शोभा से उबसोभेमाणे-शोभायमान होता हुआ चिट्ठति-विगजता है । सूत्रं ३--तीमग सूत्र ममान हुआ। मूलार्थ-धन्य अनगार मांम आदि के अभाव से सूखे हुए, भूख के कारण रूखे पैर, जङ्घा और ऊरु से, भयङ्कर रूप से प्रान्त भागों में उन्नत हुए कटि-कटाह से, पीठ के साथ मिले हुए उदर-भाजन से, पृथक् २ दिखाई देती हुई पसलियों से, रुद्राक्ष-माला के समान स्पष्ट गिनी जाने वाली पृष्ठ-करण्डक (पीठ के उन्नत-प्रदेशों) की सन्धियों से, गङ्गा की तरंगों के समान उदर-कटक के प्रान्त भागों से, सूखे हुए मांप के समान भुजाओं से, घोड़े की ढीली लगाम के समान चलते हुए हाथों से, कम्पनवायु रोग वाले पुरुष के शरीर के समान कांपती हुई शीर्ष-घी से, मुरझाए हुए मुख-कमल से क्षीण-अोष्ट होने के कारण घड़े के मुख के समान विकगल मुख से और आंखों के भीतर धंस जाने के कारण इतना कृश हो गया था कि उसमें शारीरिक बल विलकुल भी बाकी नहीं रह गया था । वह केवल जीव के बल से ही चलता, फिरता और खड़ा होता था। थोड़ा सा कहने के लिये भी वह स्वयं खेद मानता था । जिम प्रकार एक कोयलों की गाड़ी चलते हुए शब्द करती है, इसी प्रकार उमकी अस्थियां भी चलते हुए शब्द करती थीं । वह स्कन्दक के समान हो गया था। भस्म से ढकी हुई आग के समान वह भीतर से दीप्त हो रहा था । वह तेज से, तप से और तप-नेज की शोभा से शोभायमान होता हुआ विचरता था। टीका-इम एक ही सूत्र में प्रकारान्तर से धन्य अनगार के सब अवयवों का वर्णन किया गया है। वन्य अनगार के पैर जड़ा और ऊर माम आदि के अभाव से बिलकुल मूब गये थे और निरन्तर भूखे रहने के कारण बिलकुल सच हो गये थे । चिकनाहट उनमें नाम-मात्र के लिये भी शेप नहीं थी । कटि मानो कटाह (कच्छप की पीठ अथवा भाजन विगेप-हलबाई आदियों की बडी २ कढाई)

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