Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 96
________________ ९२] अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [ तृतीयो वर्गः बहूनि वर्षाणि । मासं संलेखना, सर्वार्थसिद्धे, महाविदेहे सिद्धता। पदार्थान्वयः-तेणं कालेणं-उस काल और तेणं समएणं-उस समय रायगिहेराजगृह णगरे-नगर मे सेणिए-श्रेणिक नाम वाला राया-राजा राज्य करता था उस के वाहर गुणसिलए-गुणशिलक चेतिए-चैत्य था सामी-श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उस चैत्य में समोसढे-विराजमान हो गये । तब परिसा-नगर की जनता णिग्गता-उनके मुख से धर्म-कथा सुनने के लिये निकली राया-राजा श्रेणिक भी णिग्गतो-निकला धम्मकहा-धर्म-कथा हुई और राया-राजा पडिगो-चला गया परिसा-परिषद् पडिगता-चली गई । तते-इसके अनन्तर णं-वाक्यालंकार के लिये है तस्स-उस सुणक्खत्तस्स-सुनक्षत्र अनगार अन्नया-अन्यदा कयाति-किसी समय पुचरत्तावरत्तकालसमयंसि-मध्यरात्रि के समय मे धम्मजा०धर्म-जागरण करते हुए जहा-जैसा खंदयस्स-स्कन्दक के विषय में कहा गया उसी प्रकार बहू-बहुत से वासावर्षों तक परियातो-पर्याय पालन कर काल-गत हो गया। तब गोतमपुच्छागोतम स्वामी ने प्रश्न किया तहेव-श्री भगवान् ने उसी प्रकार कहेति-प्रतिपादन किया कि जाव-यावत् सन्चट्ठसिद्धे-सर्वार्थसिद्ध विमाणे-विमान में देवे-देव-रूप से उववरणे-उत्पन्न हुआ है तेत्तीसं-तेतीस सागरोवमाई-सागरोपम की ठितीस्थिति पएणत्ता-प्रतिपादन की गई है। भंते-हे भगवन् । से-वह वहां से च्युत होकर कहां उत्पन्न होगा ' हे गौतम महाविदेहे-महाविदेह क्षेत्र मे सिज्झिहितिसिद्ध होगा। एवं-इसी प्रकार सुणक्खत्तगमेणं-सुनक्षत्र के (आलापक) आख्यान के समान सेसा-शेप अट्ठ-आठ के विषय में अवि-भी भाणियव्वा-कहना चाहिए । णवरं-विशेपता इतनी है कि आणुपुवीए-अनुक्रम से दोनि-दो रायगिहेगजगृह नगर मे दोन्नि-दो साएए-साकेतपुर में दोन्नि-दो वाणियग्गामे-वाणिजग्राम मे नवमो-नौवां हथिणपुरे-हस्तिनापुर में और दसमो-दशवां रायगिहेराजगृह नगर मे उत्पन्न हुए नवएहं-नौ की भद्दामो-भद्रा नाम वाली जणणीओमाताएं थीं नवएहवि-नौ की बत्तीसामो-बत्तीस दामो-दहेज आये नवण्हं-नौ का निक्खमणं-निष्क्रमण थावचापुत्तस्स-स्त्यावत्यापुत्र के सरिसं-सदृश हुआ किन्तु वेहल्लस्स-वेहल्ल कुमार का निष्क्रमण पिया-पिता ने करेति-किया। फिर छम्मासाछः मास की दीक्षा वेहल्लते-वेहल्ल अनगार ने पालन की और धण्णे-धन्य अनगार

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