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तृतीयो वर्गः]
भाषाटीशासहितम्। इसी प्रकार धन्य जनगार की पांसुलिएं भी हो गई थीं । धन्नस्स-वन्य अनगार के पिट्टिकरडयाणं- की हड्डी के उन्नत प्रदेशों की अयमेयाब्वे-इस प्रकार की तप-जनित मुन्दरना हो गई से जहा०-जैसे कन्नावलीति वा-कान के भूषणों की पत्ति होती है गोलावलीति वा-गोलक-वर्तुलाचार पाषाण विशेषों की पत्ति होती है वट्टयावलीति वा-वर्तक-लाख गदि के बने हुए बच्चों के खिलौनों की पति होती है एवामेव-इती प्रगर तप के कारण वन्य अनगार के पृष्ट-प्रदेशों की भी सुन्दरता हो गई थी । धन्नस्स-धन्य अनगार के उरकडयस्स-उर-(वक्षस्थल)कटक की अय-इस प्रकार की सुन्दरता हो गई से जहा जैसे चित्तकट्टरेति वा-गौ के चरने के कुण्ड का ज्योभाग होता है अथवा वियणपत्तेति वाबांन कादि वे पनों का पङ्घा होता है अथवा तालियंटपत्तेति वा-ताड़ के पत्तों का पचा होता है एवामेव-इस प्रकार धन्य अनगार का वक्षःस्थल भी मूख गया था।
मूलाथे-धन्य अनगार के कटि-पत्र का इन प्रकार का तप-जनित सावन्य हुआ जैसे उँट का पैर हो. बूढ़े बैल का पैर हो । उनमें मांस और घिर जा मर्वथा अभाव था । धन्य अनगान का उदर-भाजन इतना सुन्दगकार हो गया था जैसे सूती म्शक हो, चने आदि भूनने का भाण्ड हो अथवा लकड़ी का, बीच में मुड़ा हुना, पात्र हो । उमका उदर भी ठीक इसी प्रकार सब गया था । धन्य अनगार की पार्य की अस्थियां तप से इतनी सुन्दर हो गई थीं जैसे दर्पणों की पंक्ति हो. पास नानक पात्रों की पंक्ति हो अथवा न्याणुओं की पंक्ति हो । धन्य अनगार के पृष्ठ-प्रदेश के उन्नत भाग इतने सुन्दर हो गये थे जैसे कान के भूपों की पंक्ति हो. गोलकर्तुताकार पापारों की पंक्ति हो अथवा वक-लाख आदि के बने हुए बच्चों के खिलौनों की पंक्ति हो ! इसी प्रकार धन्य अनगार के पृष्ठप्रदेश भी दूस का निनाम हो गये थे । धन्य अनगार के उर( वक्षःस्थत ) कटको ची इतनी सुन्दरता हो गई थी जैसे गौ के चरने के दण्ड का अधोभाग होता है. गंन आदि का पसा होता है अथवा ताड़ के पत्तों का पता होता है । ठीक इसी प्रकार उमम बन्नास्थल भील का मांस और धिर से रहित हो गया था।
का-इन सून से धन्य इन्गार कटि. उदा. पांमुल्किा . पृष्ट-पत्र और वक्षायन का ना बाग वन विया गया है। उनका कवि-प्रदेश ना के कान में और नदिर से रहित हो कर देना प्रतीत होता था जैसे ऊंट