Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 23
________________ प्रथमो वर्गः ] भापाटीकासहितम् । प्राप्त कर सारे शारीरिक और मानसिक दुःखों का अन्त करेगा। ता-इसलिए एवंइस प्रकार खलु-निश्चये से जंबू !-हे जम्बू ' समणेणं-श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने जाव-यावत् संपत्तेणं-जिनको मोक्ष की प्राप्ति हो चुकी है अणुत्तरोववाइयदसाणं-अनुत्तरोपपातिक-दशा के पढमवग्गस्स-प्रथम वर्ग के पढम-अज्झयणस्सप्रथम अध्ययन का अयमहे-यह अर्थ पएणत्ते-प्रतिपादन किया है । पढम-वग्गस्सप्रथम वर्ग का पढम-अज्झयणं-प्रथम अध्ययन समत्तं समाप्त हुआ। मूलार्थ हे जम्बू ! इस प्रकार श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रतिपादन किया है कि उस काल और उस समय में ऋद्धि, धन, धान्य से युक्त और भय-रहित राजगृह नाम का नगर था । उसके बाहर एक गुणशील नामक चैत्य (उद्यान) था। वहां श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसकी धारिणी नाम की देवी थी । धारिणी देवी ने स्वप्न में सिंह देखा । जिस प्रकार मेघकुमार का जन्म हुआ था, उसी प्रकार जालिकुमार का जन्म हुआ । (जालिकुमार का आठ कन्याओं के साथ विवाह हुआ ।) आठों के घर से उसको बहुत दात (दहेज) आया । इस प्रकार सारे सुखों का अनुभव करता हुआ वह अपने राजप्रासादों में विचरण करने लगा। इसी समय गुणशीलक चैत्य में श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान हुए । वहां श्रेणिक राजा उनकी वन्दना के लिए गया। जिस प्रकार मेघकुमार (श्री श्रमण भगवान के दर्शनों के लिए) गया था, उसी प्रकार जालिकुमार भी गया । इसके अनन्तर ठीक मेधकुमार के समान ही जालिकुमार भी दीक्षित हो गया। उसने एकादशाङ्ग शास्त्रों का अध्ययन किया । इसी तरह गुणरत्न नामक तप भी किया। शेष जिस प्रकार स्कन्दक संन्यासी की वक्तव्यता है, उसी प्रकार इसके विषय में भी जाननी चाहिए। उसी प्रकार धर्म-चिन्तना, श्री भगवान् से अनशन का विषय पूछना आदि । फिर वह उसी तरह स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर्वत पर चढ़ गया । विशेषता केवल इतनी है कि वह सोलह वर्ष के श्रामण्य-पर्याय का पालन कर मृत्यु के समय के आने पर काल करके चन्द्र से ऊंचे सौधर्मेशान, श्रारण्याच्युत-कल्प देवलोक और ग्रैवेयक-विमान-प्रस्तटों से भी ऊंचे व्यतिक्रम करके विजय विमान में देवरूप से उत्पन्न हुआ । तब वे स्थविर भगवान् जालि अनगार को काल-गत हुआ जानकर परिनिर्वाण-प्रत्ययिक कायोत्सर्ग करके तथा जालि अनगार के

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