________________
४२]
अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् ।
[तृतीयो वर्गः
-
www
इस सूत्र मे हमें चार उपमाएं मिलती हैं। उनमें से दो धन्य कुमार के विषय मे हैं और शेष दो मे से एक जितशत्रु राजा की कोणिक राजा से तथा चौथी दीक्षा-महोत्सव की कृष्ण वासुदेव के किये हुए दीक्षा-महोत्सव से है। ये सव 'औपपातिकसूत्र', 'भगवतीसूत्र' और 'ज्ञाताधर्मकथागसूत्र' से ली गई हैं । इन सबका उक्त सूत्रों मे विस्तृत वर्णन मिलता है । अतः पाठकों को इनका एक बार अवश्य स्वाध्याय करना चाहिए । ये सब सूत्र ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यन्त उपयोगी हैं। क्योंकि इस सूत्र की क्रमसंख्या उक्त सूत्रों के अनन्तर ही है । अतः यहां उक्त वर्णन के दोहराने की आवश्यकता न जान कर, इसका संक्षेप कर दिया गया है।
अब सूत्रकार धन्य अनगार के अभिग्रह के विषय में कहते हैं :
तते णं से धन्ने अणगारे जं चेव दिवसं मुंडे भवित्ता जाव पव्वतिते तं चेव दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति एवं व० इच्छामि णं भंते ! तुठभेणं अब्भणुण्णाते समाणे जावजीवाए छटुं छट्टेणं अणिक्खितेणं आयंबिल-परिग्गहिएणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे विहरित्तते छटुस्स वि य णं पारणयंसि कप्पति आयंबिलं पडिग्गहित्तते णो चेव णं अणायंबिलं, तं पि य संसट्टे णो चेव णं असंसद्धं, तं पि य णं उझिय-धम्मियं नो चेव णं अणुज्झिय-धम्मियं, तं पि य ज अन्ने बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा णावकंखति । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह । तते णं से धन्ने अणगारे समणेणं भगवता