Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ २६] अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [द्वितीयो वर्गः को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के द्वितीय वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? श्री सुधा स्वामी ने उत्तर दिया कि हे जम्बू ! मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन प्रतिपादन किये हैं जैसे-दीर्घसेन कुमार, महासेन कुमार, लष्टदन्त कुमार, गूढदन्त कुमार, शुद्धदन्त कुमार, हल्ल कुमार, द्रुम कुमार, द्रुमसेन कुमार, महाद्रुमसेन कुमार, सिंह कुमार, सिंहसेन कुमार, महासिंहसेन कुमार और पुण्यसेन कुमार । इस प्रकार द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन होते हैं । टीका-प्रथम वर्ग की समाप्ति के अनन्तर श्री जम्बू स्वामी जी ने श्री सुधर्मा स्वामी जी से सविनय निवेदन किया कि हे भगवन् । अनुत्तरोपपातिक सूत्र के प्रथम वर्ग का अर्थ जिस प्रकार श्री श्रमण भगवान् ने प्रतिपादन किया था वह मैंने आपके मुखारविन्द से उपयोग-पूर्वक श्रवण कर लिया है । अब, हे भगवन् । आप कृपया मुझको बताइए कि मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान् ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के द्वितीय वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ' इस प्रश्न को सुन कर श्री सुधर्मा स्वामी अपने प्रिय शिष्य को सम्बोधित कर कहने लगे कि हे जम्बू मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान् ने उक्त सूत्र के द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन प्रतिपादन किये हैं । पाठक उनका नाम मूलार्थ और पदार्थान्वय से जान लें। ___उक्त कथन से भली भांति सिद्ध होता है कि अपने से बड़ों से जो कुछ भी पूछना हो वह नम्रता से ही पूछना चाहिए । विनय-पूर्वक प्राप्त किया हुआ ज्ञान ही पूर्णरूप से सफल हो सकता है और सर्वथा विकाश को प्राप्त होता है । अतः प्रत्येक छात्र को गुरु से शास्त्राध्ययन करते हुए विनय से रहना चाहिए । अन्यथा उसका अध्ययन कभी भी सफल नहीं हो सकता। सामान्य रूप से द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययनों का नाम सुनकर श्री जम्बू खामी विशेष रूप से प्रत्येक अध्ययन के अर्थ जानने की इच्छा से फिर श्री सुधर्मा स्वामी से विनय-पूर्वक पूछते हैं : जति णं भंते ! समणंणे जाव संपत्तणे अणुत्तरोववाइय-दसाणं दोचस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पं०

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118