Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 41
________________ तृतीयो वर्गः] भापाटीकासहितम् । सव्वोदुए, जिअसत्तू राया, तत्थ णं कागंदीए नगरीए भद्दा णामं सत्थवाही परिवसइ, अड्ढा जाव अपरिसूआ। तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते धन्नं नाम दारए होत्था, अहीण जाव सुरूवे पंच धाती-परिग्गहित, तं० खीरधाती।जहा महब्बले जाव बावत्तरि कलातो अहीए जाव अलं भोग-समत्थे जाते यावि होत्था। __ यदि नु भदन्त ! श्रमणेन यावत्संप्राप्तेनानुत्तरोपपातिकदशानां तृतीयस्य वर्गस्य दशाध्ययनानि प्रज्ञप्तानि, प्रथमस्य नु भदन्त ! अध्ययनस्य श्रमणेन यावत्संप्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ? एवं खलु जम्बु ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये काकन्दी नाम नगरी बभूव, ऋद्धि-स्तिमित-समृद्धा, सहस्राम्रवनमुद्यानं सर्वर्तुषु, जितशत्रू राजा । तत्र नु काकन्दयां नगयाँ भद्रा नाम सार्थवाहिनी परिवसति, आढ्या यावदपरिभूता । तस्या नु भद्रायाः सार्थवाहिन्याः पुत्रो धन्यो नाम दारकोऽभूत्, अहीनो यावत्सुरूपः पञ्चधातृ-परिगृहीतः, तद्यथा-क्षीर-धात्री। यथा महावलो यावद् द्वि-सप्ततिः कला अधीता । यावदलंभोग-समर्थो जातश्चाप्यभूत् । ___पदार्यान्वयः-भंते-हे भगवन । णं-वाक्यालद्वार के लिए है जनि-यदि सम० जाव सं०-मोक्ष को प्राप्त हुए प्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अणुनरअनुत्तगेपपातिक-दशा के तचस्प-तृतीय वग्गम्य-वर्ग के दम-दश यज्झयणाअध्ययन प०-प्रतिपादन किये हैं तो भंते-हे भगवन 'पढमम्म-प्रथम अजमायणम्मअध्ययन का जाव-चावन संपत्तेणं-मोन यो प्रार हुए समणणं-प्रमण भगवान मापीर ने के अट्ठ-क्या अर्थ पन्नते-प्रनिपादन किया है । सुवर्मा यानी प्रभ

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