Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 40
________________ ३४ ] अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [ तृतीयो वर्गः मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर ने अनुत्तरोपपातिक दशा के तृतीय वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं, जैसे- १ - धन्य कुमार २ – सुनक्षत्र कुमार ३ - ऋषिदास कुमार ४ - पेल्लक कुमार ५ - रामपुत्र कुमार ६ - चन्द्रिका कुमार ७ - पृष्टिमातृका कुमार ८ - पेढालपुत्र कुमार - पृष्टिमायी कुमार और १० - वेहल्ल कुमार | ये तृतीय वर्ग के दश अध्ययन कहे गये हैं । 1 टीका -- द्वितीय वर्ग की समाप्ति होने पर जम्बू स्वामी ने फिर सुधर्मा स्वामी से प्रश्न किया कि हे भगवन् । द्वितीय वर्ग का अर्थ तो मैंने श्रवण कर लिया है। अब मेरे ऊपर असीम कृपा करते हुए तृतीय वर्ग का अर्थ भी सुनाइए, जिस से मुझे उसका म बोध हो जाय, इस प्रश्न के उत्तर मे श्री सुधर्मा स्वामी ने प्रतिपादन किया कि हे जम्बू । मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान् महावीर ने तृतीय वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं । पाठकों को मूलार्थ में ही उनके नाम देख लेने चाहिएं । यह हम पहले भी कह चुके हैं कि विनय और भक्ति से ग्रहण किया हुआ ही ज्ञान फलीभूत हो सकता है, विना विनय के नहीं । यही शिक्षा इस सूत्र से भी मिलती है । अध्ययन का अर्थ ही शिक्षा ग्रहण है । अतः पाठकों को इन सूत्रों का स्वाध्याय करते हुए अवश्य शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए । यह बात भी केवल दोहरानी मात्र ही रह जाती है कि सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति के लिये सम्यक् चारित्र की आराधना की अत्यन्त आवश्यकता है, इन दोनों बातों की शिक्षा इस सूत्र से प्राप्त होती है, अतः यह वर्ग अवश्य पठनीय है । अब जम्बू स्वामी तृतीय वर्ग के प्रथमाध्ययन के अर्थ के विषय में सुधर्मा स्वामी से प्रश्न करते हैं :-- जति णं भंते ! सम० जाव सं० अणुत्तर० तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा प०, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कागंदी णाम गरी हत्था रिन्द्ध-त्थिमिय- समिद्धा सहसंववणे उज्जाणे

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