Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay
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प्रथमो वर्गः]
भापाटीकासहितम् । णित्ता कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम० सोहम्मीसाण जाव आरणच्चुए कप्पे नव य गेवेजे विमाणपत्थढे उड्ढं दूरं वीतीवत्तित्ता विजय-विमाणे देवत्ताए उववण्णे। तते णं ते थेरा भगवंता जालिं अणगारं कालगयंजाणेत्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सगं करेंति २ पत्त-चीवराई गेण्हंति तहेव ओयरंति । जाव इमे से आयार-भंडए। भंते ! त्ति भगवं गोयमे जाव एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जालि-नामं अणगारे पगतिभद्दए।से णं जाली अणगारे कालगते कहिं गते ? कहिं उववन्ने ? एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी तहेव जधा खंदयस्स जाव कालं० उड्ढं चंदिम जाव विजए विमाणं देवत्ताए उववन्ने।जालिस्सणं भंते! देवस्स केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! बत्तिसं सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता।से णं भंते!ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं ३ कहिं गच्छिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति, ता एवं जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढम-वग्गस्स पढम-अज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते । पढम-वग्गस्स पढम अज्झयणं समत्तम् । ___एवं खलु जम्बु ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहं नगरमभूत् । ऋद्धिस्तिमितसमृद्धं गुणशैलकं चैत्यम् । श्रेणिको

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