Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 10
________________ नमो त्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स प्रथमो वर्गः -- तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे. अज-सुहम्मस्स समोसरणं। परिसा निग्गया जाव'जंबू पज्जुवासति एवं वयासी जइ णं भंते ! समणेणं जाव.. संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमढे पण्णत्ते नवमस्स णं भंते अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहे 'आर्य-सुधर्मस्य समवशरणम् । 'परिषन्निर्गता यावज्जम्बूः पर्युपासति एवमवादीत् “यदि भदन्त ! श्रमणेन यावत्संप्राप्तेनाष्टमस्याङ्गस्यान्तकृद्दशानामयमर्थः प्रज्ञप्तः, नवमस्य नु भदन्त ! अङ्गस्यानुत्तरोपपातिकदशानां यावत्संप्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः। __पदार्थान्वयः-तेणं-उस कालेणं-काल और तेणं-उस समएणं-समय मे रायगिहे-राजगृह नगर मे अज-सुहम्मस्स आर्य सुधा समोसरणं-विराजमान

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