Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अनुसंधान-२८
सकलमुत्कलमुत्पललोचनं नमत तं मततन्त्रमगः प्रदम् । मुनिजना निजनायकमादरा
दसितरुक्सितरुक्करुणापरम् ॥७॥ सुकविराजिविराजितपर्षदाश्रितमसंतमऽसंतमसंश्रिया । भजत मालतमाल समुधुतिप्रचुरमर्त्यरमर्त्यपहं गुरुम् ॥८||
भुजगचिह्नममंदममंदकं, चतुरसादरसादरमानकम् । भृशममंदतमंदतरांहसं,
वसुमती तमतीतरसं भजे ॥९॥ मुनिपतेरमृतेरमृतेशितुश्चरणमक्षयमक्षयदं सदा
अरितहन्तुरऽहन्तुरसाछ्ये वितरसोदरसोदरसङ्गरे ॥१०॥
भववृषाय वृषायतसंयमः, शुभवतो भवतो नवदो मम । सुखकृते खकृते विदितावधे,
विमलधीमलधीरिमयुग्विभो ! ॥११॥ सुतनुभाऽतनुभा तनुभावुकं, वृजिनहज्जिनहत्कमलार्यमा । सततमाततमाननृपाचितो, विजयदो जयदोहदपूरकः ॥१२॥
सुमहितानि हितानि वचांसि यः, श्रुतिवशन्तवशंतनु पार्श्वराट् । नयति तस्यतितस्य च दुर्विशं, नरवरः स्तवरस्तमसोज्झितम् ॥१३।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110