Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
July-2004
ढाल
कंस दसार बेहू मिल्याए, तेह प्रीति मनोरथ सवि फल्या ए कंस कहइ सुणि तुं कुमार, अच्छर वृत्तिका नगरी नयर सार || १५१॥ मझ पीतरीउ कुमर राज, तिहां देवक नामिइ करइ राज देवकन्यां जिसी देवकीओ, तस बेटी नामइ देवकीए || १५२ || तेहनूं रूप तुंह जि वरुए, इणि वातइं थावुं सादरू अ बेउ वृत्तिकापुरि गया ए, तिहां देवक राइ कीधी मया ॥१५३॥
कंस कहइ सुणउ स्वामि सार सोभागी ए दसमुं दसार देवकीयोग्य वर अति भलउ ए, संयोगिई पुन ही सोहिलुं ए ॥१५४॥
दूहा सिसिहर विण पूनिम किसी, विण पूनिमसिउं चंद सुकुलीणी स्त्री सुगुण नर, जडती जोडि नरिंद ॥ १५५ ॥
हंसा रच्चंति सरे, भमरा रच्चंति केतकीकुसुमे चंदनवने भोअंगा, सरिसा सरिसेहि रच्वंति ॥१५६॥
हंसा राच्चइ सरवरे, चंदनि चतुर भूअंग केतक राच्चइ भमरला, ए संयोग सरंग ॥१५७॥
71
ढाल
एह ज वयण साचुं सुणीए, देवकराजा इहां भणीओ कन्या देव मन कीयुं ए, तव ढूंकडउं लगन जोइ लीउं ए || १५८।। मणहर मंडप मंडीइ ए, वली अशुभ अंशुक सवि छंडीइ अ केलवीइं नवरसवती ए, जिमइ जासक जन ते रसवती ए ॥ १५९ ॥
कन्या रूप सिणगारीइ ए, करी ऊगदि (टि) अंग समारीइ ए वेणी लहकइ ढलकती ए, चंद्रानदि चालइ चमकती अ ॥ १६०॥
मृगनयणी मन मोहती ए गय गमणी चतुर चंपकवनी अ पाणि सुकोमल बांहडीओ, कर कयणर (कणयर) केरी कांबडी जे || १६१ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110