Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ July-2004 89 मणुअ जनम पामी हुसिइ, सुख अनंत निवास नेमि सीस बलभद्र रिषि, पूरु मनची आस ॥३५१।। ढाल जयमालानी हिव सामी नेमि जिणंद, पय सेवई चउसठि इंद पडिबोही बहु परिवार, हूउं सिद्धि रमणि उरि हार ॥३५२।। धन एह चरीअ विशाल, धन धन जिन धर्म रसाल एह चरीय सुणउं अति चंग, जिम पामु अविहड रंग ॥३५३॥ आंचली श्रीनेमि जिणेसर नामि, नविनधि हुई घरि ठामि श्रीनेमि जिणंद अराहई, तस अलीय विघन सवि जाइ ॥३५४॥ जस नामइ वंछित सिद्धि, जस नामइ, अविहड रिद्धि तस नाम जपु निसदीस, जिम पूजइ मनह जगीस ॥३५५।। तपगछ केरु सिणगार, श्रीलखिमीसागर गणधार श्रीसुमतिसाधूसूरीसीस, श्रीहेमविमलसूरीस ॥३५६।। वर लास नयरि धरि हरिस, सय पन्नर सत्तावन वरिस कुलचरण सुपंडित सीस, कहइ हरखकुल निसिदीस ॥३५७|| धन धन एह चरिय विशाल, धन धन जिन धरम रसाल एह चरीय सुणउ अतिचंग, जिम पामु अविहड रंग ॥३५८॥ इतिश्रीवसुदेवचुपइ राग गुडी सीरोही नगरे भ० श्री श्री श्री श्रीविद्यासागरसूरि आ० श्री श्री श्रीलिखिमीतिलकसूरि शिष्य मुनि कर्मसुंदरेण लिखतं स्वगछ निमत्तं ॥छ।। टी.वी.टावर सामे ड्राइव इन रोड, थलतेज अमदावाद-१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110