Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 99
________________ 94 कडी २८४ कडी २९९ कडी ३०१ कडी ३०७ कड़ी ३१३ कडी ३१४ कडी ३३२ कडी ३७ कडी ३३८ उलग = मुरीयडा खडोखली = क्रीडा माटेनी नानी वाव टोळे मळ्युं / उभरायुं सेवक/विनंति, परदेशमां राजसेवा होर्या तरवयु मार = अडचण सार = सहाय / साचुं / परिणाम ऊरण = ऋणमुक्त जामण = जन्म 113 कासग = काउसग्ग चउसाल = विशाळ Jain Education International सुधारो अनुसन्धान-२७मां पृ. १५ पर एक विधान आ प्रमाणे थयुं छे : "आ पछी पालित्ताचार्य तथा बप्पभट्टसूरिनां नामो आवे छे. अहीं पण एक ऐतिहासिक विसंगति जोवा मळे छे, ते ए के मुरंड राजानो सम्बन्ध बप्पभट्टिसूरि जोडे होवानुं प्रसिद्ध छे, छतां तेनो सम्बन्ध पादलिप्ताचार्य साथै जोडी देवायो छे." अनुसंधान- २८ आ विधान बराबर नथी. मुरंडनो सम्बन्ध खरेखर पादलिप्ताचार्य जोडे ज हतो, ते प्रबन्ध-ग्रन्थो थकी सिद्ध ज छे. सुज्ञ वाचकोने आ सम्पादकीय भूल सुधारी लेवा विज्ञप्ति. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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