Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
86
अनुसंधान-२८
राग मेघ तोरणि आवीउ वली गयु, सुणीय पसू पोकार रे विरहि दाझइ राणी रायमइ, हीइ हार अंगार रे ॥३१६।। राजलि राणी वीनवइ, मोरा नीठर नाहा रे सुणि न वयण स्वामी सोमलां, न छोडउ तोरी बांह रे ||३१७|| सद्गुण तुं विण दोस दई, ईम दाखि न छेह रे वली वीसारि म वल्हहा, नव भव तणउ नेह रे ॥३१८॥ चंदन चंदन केवडी, नही राजलि रंग रे करई वेदन वली केवडी, नही चंपक चंग रे ॥२१९॥ राजलि केडइं संचरइ गिरनारि नरनइ शृं(सं)गि रे झिरिमिरि वरसइ इच्छइ मेहलउ, घण भीजइ छइ अंग रे ॥३२०॥ जिणवर हाथि चारित्र लीउं, संवेग [रंग] अभंग रे केवलि पामी सिद्धिगइ, हुइ अविचल रंग रे ॥३२१॥
चउपइ बावीसमउं जिणेसर सामि, पाप पडल सवि नासइ नामि द्वारिका नगरी पुहतां जिसिइं, देवे समोसरण कीउ तिसई ॥३२२।। चउसठि इंद्र करई जस सेव, आवई हिव नवमुं वासुदेव अभिगम पंच धरी वंदेइ, जिनवर वाणी अमृत वरसेइ ॥३२३।। देवकिना उत्तम छय पुत्र, जिणवरि हाथि लीउं चारित्र देवकि घरि आव्या वहिरवा, अनुक्रम दीठा ते अभिनवा ॥३२४॥ नेह अधिक उपन्नउं इसिउं, जिन पूच्छई सामि ए किसउं जिन कहइ ए तुझ सुत जूजूआ, सुलसा घरि वृद्धिवंता हूआ ||३२५॥ संवेगी ए संयम लीध, देवकि हीइ विमासण कीध सात पुत्र माहरइ सविवेक, स्तन्यपान न कराविउ एक ||३२६।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110