Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 89
________________ 84 मुझ टाली पूरि सकइ अ, सबल शंख ए कुंण तु नेमिकुमर जाणी करी अ, हरि चिंतइ मनि खूण तु ॥ २९३ ॥ अनुसंधान- २८ हरि नेमीसर तेडीउंए, बाह नमावइ, बेउ तु कमलनाल जिम बांह हरि तुं, नेमिइ वाली लेउ तु ॥ २९४ ॥ नेमि बाह हरि वालतु ए, माधव वलगु एम तु तरुअर डालि हींचतु ए, कपिवर दीसइ जेम तु ॥ २९५ ॥ अति बल जाणी चतवइ ए, लेसई ए मज्झ राज तु हरिनइ रामि इसिउ कहिइ ए, ए नही राजिं काज तु ॥ २९६ ॥ एक नारि परणइ नहींअ, नेमीसर नीराग तु हरि तेडइ वइसिउं सणी, गिउं अंतेउर अति राग तु ||२९७|| अभिनव रूप अंतेउरीअ, साथ नेमि लेयंतु वनि जाइ तव आवीउ ए, महीयलि मास वसंत तु ॥ २९८ ॥ मुरीयडा सहकार सवि चंपकनइ नारिंग तु कामकुं भमरु ( ? ) रुणझुण ए, चीति धरंतु रंग तु ॥ २९९ ॥ कोइलडी कलिरव करई ए विर[ ही] हीअडां न सुहाइ तु चंदन परिमल महमहइ ए, वा मलयानिल वाइ तु ॥ ३००॥ हरि नारी सवि मोकलीय, खडोखली झीलंति तु सुरहि नीर सींगी भरीयां, नेमीसर छाटंति तु ||३०१|| हावभाव अधिक धरई ए, देउर मनावइ नारि तु नेमिकुमर नीराग मन, पुहचइ नही विकार तु ॥ ३०२ || पाणिग्रहण मानइ नहीय, तव नारीय पभंणति तु देउर एक नारी तणउं ए, तइ निर्वाह वहंति तु ॥ ३०३|| इस्यां वचन बहु बोलीयां ए, नवि बोलइ जिनराय तु मानिउँ मानिउं इम कहीअ, जणाविउं हरिराय तु ॥ ३०४|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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