Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 75
________________ 70 दूहा भाव विरूपी नीकल्यउ, हुंतुं कुंअर विदेसि बहुत्तरि सहस अंतेउरी, परणिओ नव नव वेस ॥१४०॥ पुण्य सुखसंपद मिलेइ, पुण्यई नव नव रिद्धि पुण्य लगइ सहू संपजइ, पुण्यई वंछित सिद्धि ॥ १४१ ॥ पुण्य करी वसुदेवनंइ, रिद्धि अर्चिती जोइ भावठि भंजण मानवी, पुण्य करु सहू कोइ ॥ १४२॥ अनुसंधान - २८ हिव हत्थिणाउरि च्छइ एक सेठि, ललइतना सुत सुललित देठि बीज गंगदत्त सुत होइ, कर्मभावि माइ न गमइ सोइ ॥ १४३ ॥ दासी हाथि छंडावर जिसइ, सेठि छानउ राखिउ तिसिइं वृद्धिवंत माता जाणिउ, तु काढिउ बाहिरि ताणीउ || १४४ || गिउ वनमाहि मुनीश्वर दीठ, तव तस हीअडइ हरख अनीठ तस प्रतिबोधइ चारित्र लेइ, ललितकुमार पणि तिम जि करेइ || १४५|| चारित्र अणसण पाली रोक पामिउ महाशुक्र सुरलोक वल्लभ पणइ नीआणउं करइ, गंगदत्त वली तिहां अवतरइ ॥ १४६॥ वसुदेवह रोहिणी कलत्र, धज, सायर, गज, सीह पवित्र च्यारई सुपन निसि नीद्र मझारि, देखइ हिव तेहनइ विचार ॥ १४७॥ देवलोकि ललतांगकुमार, जीव चिवीनइ पुण्य प्रकारि, रोहिणी गर्भवासि उपन्न, उत्तम डोहलां हुइ धनधन्न ॥१४८॥ सुत जायु ते जिइ अभिराम नाम तेहनुं दीधउं राम वरस आठनउं लील विलास, भणिउ गुणिउ अति बल अभ्यासि ॥ १४९॥ वस्तु कुंअर वसुदेव कुंअर वसुदेव अतिहिं सुविसाल बहुत्तरि सहस अंतेउरि, सपरिवार पुरंदर रोहिणीसुत हिव ज नमिउ तास नाम बलदेवसुंदर, कंसई हिव तेडावीउ धरी सनेह बहूत समुद्रविजय पुच्छी कुमर, मथुरा नयरी पहुत ॥ १५०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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