Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ 68 अनुसंधान-२८ चउपई समुद्रविजय अधिकु दुख धरई, प्रेतकाज सवि तेहनां करइ दुक्ख धरंतु पालइ राज, अहनिसि धर्म करइ महाराज ॥११८॥ हिव चालई वन माहि कुमार, थिउ प्रभात उगिउ दिनकार खडग सखाइ तु पालउ पुंलइ, तुं वाटइं बांभणरथ मिलइ ॥११९।। बांभणरथ बेसारिउ कुमर, जोअण पाच दस आविउ नयर तिहां नृपकुंअर प्रतिन्या एह, गीतकला जीपइ पति तेह ॥१२०॥ पडह छबी देखाडी कला, कुंअरि मनि भागा आंमला पाणिग्रहण करी तिहार रहिउ, केते दिनि आघउ संचरिउ ॥१२१॥ विद्याधर नगरी जांइ, कन्या परणइ मोटा राय पांच पांचसइ कन्या सार, विद्याधरी पणमइ इकवार ॥१२२।। करमविहूणउ जे नर होइ, सफल मनोरथ तास न होइ पुण्यवंत नर जिहां जिहां जाइ, तिहां तिहां रानी वेलाउल थाइ ॥१२३।। पोढउं नयर अछइ पेढाल, राज करइ हरिचंद भूपाल कनकवंती तस बेटी नाम, रूपि रंभा अति अभिराम ॥१२४|| नल राजानी जे स्त्री हती, पूरव भवइ दमयंती सती ते कनकवती भरतार, कुंअर हुउ ते पुण्यप्रचार ॥१२५।। ए पूरव तपह प्रमाण, सघले महिमा मेरु समान जिन भाखीउ तप कर्यो खरु, जिम लीला भवसायर तरु ॥१२६।। कुंअर भमंता जिहा जिहां जाइ, तिहां तिहां उत्सव हरख न माइ जे थानक पणि छंडी जाइ ते वसउं पणि शून्य कहाइ ॥१२७॥ दूहा हंसा जिहि गय तिहि गया, महि मंडणा हवंति छेह उ तांह सरोवरा, जे हंसे मुच्चंति ॥१२८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110