Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
80
अनुसंधान-२८
सोवनवर आवास घर चउपट पोलि पगार नगरी नामई द्वारिका, कीधी धनदइ सार ॥२४७॥
वस्तु
अमरनगरी अमरनगरी तणउं अवतार दीसई धनपति धवलहर . गिरुअ गोगु(मु)ष(ख) भमरी मनोहर देवभूअण घण दीपता, कनक सार प्रकार सुंदर ॥२४८॥ नव बारी निरुपम नगरी, जोयण बार विशाल देवह नीमी द्वारिका, यादव वसइ भूआल ॥२४९।।
चउपइ यादव कुल कोटि छपन्न, तेह माहि निवसइ धनधन्न बाहरि तिहां बहुतरि कुल कोडि, यादव वसई नहीं इक खोडि ।।२५०।। केते वरसि गो इक वार, सारथवाहि कहिउं वचार द्वारिका नगरी यादव सुणी, जरासिंधु राई सुधि सुणी ॥२५१॥ पूरव वयरि चिंतइ इसिउं, हजी यादव जीवि ए किसिउं पुत्र जमाई बे मुझ हण्यां, हिव ए सही देवि अवगण्या ॥२५२।। जरासिंध तव थिउं विकराल, दह दिसि कटक मिलई ततकाल एक असुर जिम काल कृतांत, मोडई मूछ महा बलवंत ॥२५३॥ मदबिंभल मयगल माचता, तरल तुरंगम सवि नाचता रथ पायका नवि लहीइ पार, दंडायुध छत्रीसइ अपार ॥२५४॥ पाष(ख)र टोपनई जरह रह नइ जीण, सुभट कोइ नवि दीसइं दीण वाजइ मदनभेरि रणतूर, चालइ कटक समुद्रह पूर ॥२५५॥ वाटइ पर्वत कीजइ चूरि, षे(खे)हाडंबरि छायु सूर शेषनाग पणि न सहइ भार, जाणे धरणे धूजइ थाहर ॥२५६।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110