Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ July-2004 31 श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम् (सुन्दरीच्छन्दः) ॥ ॐनमः।। जिनवरेन्द्रवरेन्द्रकृतस्तुते, कुरु सुखानि सुखानिरनेनसः ॥ भविजनस्य जनस्यदशर्मदः, प्रणतलोकतलोकभयापहः ॥१॥ अविकलं विकलंकमुनिः शिवं, विगतमो गतमोहभरः क्रियात् । विनयवन्ननयवन्नृभिरचितः प्रमददो मददोषमलोज्झितः ॥२॥ मुनिजने निजनेमियुजा मुदं, वितरतातरता च भवांबुधिम् । अविरतं विरतं स ददातु शं, शिवरमावरमापि हि येन वै ॥३॥ कलिकुमार्गकुमार्गमहामृगद्विपरिपोऽपरिपो परमं पदम् । वितरमे वरमे चरणाम्बुजे, रतिमतोऽममतो महितस्तव ॥४॥ सुरगुरूपमरूपमनोहरैः, प्रवरधीभिरधीभिरसंयुतैः । अभिनुतो भवतो भवतोऽवता ज्जिनवरोमररोमरकापहृत् ॥५॥ असुमतः सुमतः शुभतीर्थपः सुमहसोऽमहसोज्झितमाधुपः । विदितजातिरऽ जातिरतिः श्रियं, वितनुतात्तनुतामलदीधितिः ।।६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110