Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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July-2004
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श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम् (सुन्दरीच्छन्दः) ॥ ॐनमः।।
जिनवरेन्द्रवरेन्द्रकृतस्तुते, कुरु सुखानि सुखानिरनेनसः ॥ भविजनस्य जनस्यदशर्मदः,
प्रणतलोकतलोकभयापहः ॥१॥ अविकलं विकलंकमुनिः शिवं, विगतमो गतमोहभरः क्रियात् । विनयवन्ननयवन्नृभिरचितः प्रमददो मददोषमलोज्झितः ॥२॥
मुनिजने निजनेमियुजा मुदं, वितरतातरता च भवांबुधिम् । अविरतं विरतं स ददातु शं,
शिवरमावरमापि हि येन वै ॥३॥ कलिकुमार्गकुमार्गमहामृगद्विपरिपोऽपरिपो परमं पदम् । वितरमे वरमे चरणाम्बुजे, रतिमतोऽममतो महितस्तव ॥४॥
सुरगुरूपमरूपमनोहरैः, प्रवरधीभिरधीभिरसंयुतैः । अभिनुतो भवतो भवतोऽवता
ज्जिनवरोमररोमरकापहृत् ॥५॥ असुमतः सुमतः शुभतीर्थपः सुमहसोऽमहसोज्झितमाधुपः । विदितजातिरऽ जातिरतिः श्रियं, वितनुतात्तनुतामलदीधितिः ।।६।।
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