Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
July-2004
65
ढाल (वीरजिनेसर चरणकमल ए ढाल) हिव वसुदेवकुमारउं, जे कुतिग वीत ते सुणिज्यो सहू सावधान लइ जगह वदीउ, रूप मयण करी अवतरिउं अश्विनीकुमार, नयर माहि रामति रमइ ए वसुदेवकुमार ॥९१॥ जे जे देखइ कुमर रूप, तेह मनि अति भावइ रूपि मोही नगरनारि, सहू जोवा आवइ एक अटाले चडइ नारि, वेला नवि चूकई एक नारि भरतारनइ अप्रीसिउं मूंकई ॥९२।। बालक रोतुं नवि लइ, इक जाई पूठिइ कुंवर रूप जोवा भणी ए, अधजिमति ऊठई एक आखि आंजी करी, बीजी अणआंजई ढलतुं घी मूकइ घणी ए, तस जोवा काजि ॥१३॥ करिय विमासण सयल लोकि वीनवीउ राय सामी अम्ह वसवा भणी तुम्हे आपु ठाय राजा कारण पूछीउ ए माहाजनइ इम बोलइ सोभागि वसुदेव रूप बीजउं नवि तोलइ ॥९४॥ तीणइ मोही सयल नारि, दिन रात न जाणई धान अलूणउ नवि लहइ, पति मोह न आणइ एह रीति रूडी नही, स्त्री लोपइ लाज स्वामी उत्तम कुल तणुं ए, इम विणसइ काज ॥१५॥ लाजइं पालई शील एक लाजि दिइ दाम लाज लगई इक तप तपई ए भवदेव समान धरम काज लाजि करइं, लाजइ व्रत राखइं कहीइ धरमइ जोग जीव जे लाजह पाखइं ॥९६।। महाजननइ राजा कहइ, तुम्हे पुहचउ ठामि वारिसुं हुं वसुदेवनइं, सुखि वसज्यो गामि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110