Book Title: Anusandhan 2004 07 SrNo 28
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ 46 त्रणि पल्योपम सुहम आय उत्कृष्टु कहीइ, लहु एक अंतमुहुत्त मान आय पूरुं लहीइ, असन्नी अपजत्त होइ नहु होइ पजत्त, गुरु - लहु सरीखुं जाणिज्यो एक अंतमुहुत्त. (दूहा) मानुष सरीखा आऊखा, हस्त्यादिकनां होइ, तुरगादिक तिरियंचना भाग चउथइ ते जोइ. छाली छगलादिक तणां, अठम भागई आय, गो-खर - महिषादिक सुणउ, पंचम भाग कहिवाय. उष्ट्रादिक वली एहनां, पंचम भागई जाणि, सुणहादिकनां आउखां, दसमा भाग प्रमाणि. जहिं जेहवां मानुष तणां, आय उत्कृष्टां होइ, तेह मान आदि करी, हस्त्यादिकनां जोइ. पंचम आरइ आजनइ, वीसोत्तरसउ आय, सूत्रमतिं मानुष तणुं, एह थकी तिरि पाय. भवि भवि भमतां जीवडई, बांध्युं नारक आय, नरग पहिलइ पुहुतु वली, तिहां सागर एक ठाय. वरस सहस दस लहु हुइ, हवई बीजइ कहुं जोइ, सागर त्रणि पूरा लहइ, लघु एक सागर होइ. आय उत्कृष्टुं लहि वली, त्रीजइ सागर सात, लघु सागर त्रिणि जांणीइ, चउथानी सुणउ वात. दस सागर लघु सत्त तिहां, सतर सागर वली आय, पंचम नरगिं प्राणीउ, दस सागर लघु ठाय. छठइ नरगिं नारकी, लहइ सागर बावीस, सतर सागर लघु जाणीइ, सुणु छेहिलि तेत्रीस. Jain Education International For Private & Personal Use Only अनुसंधान - २८ २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110