Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 8
________________ सार ए के अनेक साधनोनो आधार लईने रचेलो, समकालीन मान्य पुरुषोए प्रमाणेलो, अने पोताथी जाण्ये अजाण्ये खोटुं न लखाई जाय ते माटे खूब सभान रहेनारा सर्जके सर्जेलो आ ग्रंथ अने तेमांनी चमत्कारिक जणाती वातोने सदंतर अप्रमाणिक मानवानुं साहस करी न शकाय. कर्तानो मुख्य सूर श्रीस्तंभनपार्श्वनाथनी प्रतिमानो महिमा गावानो छे. ए प्रतिमा प्रत्ये तेमना चित्तमां अनन्य श्रद्धा-भक्ति छे, ते अहीं सर्वत्र अनुभवी शकाय छे. जो के प्रसंगोपात्त, परंपरागत पद्धतिए, अजैन मान्यताओने जैन ढांचामां ढाळवानो के तेमनुं जैन अर्थघटन करवानो तेमनो प्रयास जोवा मळे छे, जे केटलेक अंशे घणो मौलिक लागे (प्र-४, १६ वगेरे). तो २९मा प्रबन्धमा इतर दर्शनोनी खबर पण तेमणे लई नाखी छे. आम छतां, ग्रंथकार -- अयोनिजेन येनेदं सर्वं सृष्टं चराचरम् । सर्वशक्तिपरीताय, तस्मै विश्वात्मने नमः । (प्र.१६) विश्वान्यमूनि विश्वानि, येन सृष्टानि शक्तितः । अनादिनिधनो देवः, स्वयं सिद्धो मुदेऽस्तु वः ॥ (प्र.२२) आवां पद्यो लखे छे, ते जोईने भारे आश्चर्य उपजे तेम छे. कर्तानी तात्त्विक समन्वयदृष्टिनो ज आ बधामा परिचय मळे छे, एवं तारण काढीए तो ते अयोग्य न गणाय. आ रचना तद्दन पुराणात्मक नथी. आमां इतिहासनां छांटणां पण छे खरा. आने कोई दंतकथालेखे वर्णवी शके जरूर. परंतु बधी दंतकथा अप्रमाणिक ज होय-एवो निश्चय राखीने चालनार इतिहासशोधक भाग्ये ज विश्वसनीय अने सत्यान्वेषी गणाय, ए पण, अहीं ज, स्पष्ट करवू पडे. तो इतिहासोपयोगी अंशो आपणे जोईए : १. २७मा प्रबन्धमां झंझूवाडा, त्यांना सूर्यमंदिरनी कथा, पंचाश्रय-जे कर्ताना वखतमां पंचासर नामे प्रसिद्ध थई चूकेलं ते आजनुं पंचासर गाम, तेनी नजीकर्नु पाडला गाम-जे आजे पण ए ज नामे विख्यात छे; त्यांनी नेमिनाथनी जीवत्प्रतिमा (नेमिनाथनी विद्यमानतामां ज बनेल तथा प्रतिष्ठित प्रतिमा)-जे अत्यारे तळाजा तीर्थे पर्वत उपर लावी होवानुं जाणीतुं छे; शंखेश्वरनी मूल For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 126