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दोनो साथ रहते है, तो प्रथम दृष्टि मे इस बात को मानने के लिये कोई तैयार न होगा ।
लेकिन हम यह पूछे कि प्राकाश मे जब प्रकाश था तब भला अधकार कहाँ था ? प्रकाश का आगमन होते ही अधकार कहाँ छिप गया ? सोच विचार करने पर ज्ञात होगा कि जो
कार था वह तो प्रकाश मे ही विलीन हो गया । ठीक उसी तरह जव अधकार का ग्रागमन हुआ तब जो प्रकाश था वह अधकार में विलीन हो गया, उसमे मिल गया, उसके साथ ही हिल-मिल गया ।
इम प्रकाश और अधकार के छिपने के लिये दूसरा कोई स्थान तो है ही नहीं। इसलिये जो जहाँ था वही रह गया अथवा जो पहले न था, वह बाद मे ग्राने वाले मे मोजूद था ही और जो ग्राया वह्, प्रथम जो आाया था उसमे ही मौजूद था ऐसा कहने मे क्यों ऐतराज है ? इसके विरुद्ध दलील किस तरह हो सकती है ? जो कुछ परिवर्तन हुआ है वह तो सिर्फ ग्रवस्था अथवा समय का है। रात की अपेक्षा से अधकार और दिन की अपेक्षा से प्रकाश को हमने देखा । लेकिन, इन दोनो का ग्राधार एक ही होने के कारण, परस्पर विरोधी गुणधर्म होते हुए भी, वे दोनो एक दूसरे मे समाये हुए है, इस बात का इकार भला हम कैसे कर सकते है ?
घर के एक कोने मे बैठकर मे यह लिख रहा हूँ। बिजली का बटन दबाते ही प्रकाश छा जाता है । फिर विरुद्ध दिशा मे दबाते ही मँधेरा छा जाता है। कमरा एक ही है । चारो गोर से बन्द कर दिया गया है । उजाला होते ही मँधेरा कहाँ