________________
१३३
इन सब के लिये कारणभूत या जिम्मेवार है और यह एक ही कारण सभी कार्यो के लिए काररणभूत है ।'
यहाँ हमे भवितव्यता का अर्थ भली भांति समझ लेना चाहिए | सामान्य लोग इस शब्द के दो ग्रर्थ करते हैं नसीव या प्रारब्ध वना
(१) कर्म के द्वारा मनुष्य का जो है सो
"
(२) ईश्वर की कृपा अथवा ईश्वर की इच्छा । से करता हू, मैंने किया यह मानव मिथ्या वकता है, पर ईश्वर की प्रज्ञा बिना पत्ता नहीं हिल सकता है, ऐसा कहने और मानने वाले भवितव्यता या नियति का अर्थ ' केवल ईश्वर की इच्छा ही' कहते हैं ।
ये दोनो अर्थ ठीक नही हैं । यहाँ 'भवितव्यता' शब्द का प्रयोग इन दोनो मे एक भी अर्थ मे नही किया गया है। जैन तत्त्ववेत्ताओ ने कर्त्ता के स्वरूप मे किसी ईश्वर का अस्तित्व नही स्वीकार किया है । कोई कार्य करने की 'इच्छा' एक मानव मुलभ वृत्ति है और जिसमे ऐसी वृति हो वह ईश्वर नही कहला मकता, जैन तत्त्ववेत्ता का यह कहना है ।
हिन्दू धर्म में ईश्वर के दो स्वरूपो की कल्पना की गई हैसाकार और निराकार । उन्होने इन दोनो स्वरूपो को क्रियाशील, कर्त्ता-स्वरूप माना है । जैन तत्त्वज्ञान इस बात को स्वीकार नही करता । यह एक अलग ही विषय है, जिसकी यहाँ चर्चा करने से विपयान्तर हो जाने की सभावना है । इसलिए यहाँ तो हमे जैन दार्शनिको के अनुसार भवितव्यता अर्थात् नियति के अर्थ का निरूपण करके रुक जाना होगा
www