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का समय अब आने लगा है। अब इस सिद्धान्त का प्रचार करने का-बडे पैमाने पर और जोर शोर से प्रचार करने का समय आ पहुंचा है। यदि कहा जाय कि आज इस सिद्धान्त को समझने की जितनी आवश्यकता है उतनी पहले कभी नही थी, तो अतिशयोक्ति न होगी। थोडा सा खतरा लेकर भी इस उपकारक और दुर्लभ तत्त्व-विज्ञान का पूरी शक्ति से प्रचार किया जाना चाहिये ।
तत्त्वनान के उच्च तथा कठिन क्षेत्र से लेकर, विचारमूलक भूमिका में लेकर आचार मूलक प्रदेश तक की सभी परिस्थितियो मे अनेकान्त तत्त्वज्ञान की जानकारी अत्यन्त उपयोगी हो सकती है।
इस ज्ञान का विवेक पूर्वक उपयोग करने वालो के लिए इसमे लाभ और कल्याण कूट कूट कर भरा पड़ा है।
इस पुस्तक मे अब तक जो कुछ लिया गया है उसे पढने पर पाठक के मन मे जैन धर्म तथा जैन तत्त्वज्ञान के प्रति अवश्य आदर पैदा होगा-इस विषय की और भी अनेक महत्त्व की बातो के सम्बन्ध मे जिनासा भी अवश्य उत्पन्न होगी।
अत इसके बाद के पृष्ठो मे हम कुछ उपयोगी ज्ञान का निरूपण करेगे।