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रहेगा। चोर कर्म जाने से असत्य की आवश्यकता ही मिट गई । इतना होने पर पूर्ण अहिसा प्रकट होगी ही। ___ अव उलटी वस्तुओ का क्रम लीजिए । हिसा करो, तो फिर झूठ तो पाएगा ही । झूठ के आने से अनधिकार की वस्तु हस्तगत करने के प्रति अरुचि न रह कर इच्छा प्रकट होगो । उसमे से अब्रह्म भी प्रकट होगा। और तब परिग्रह की तो कोई सीमा ही न रहेगी। ___ परिग्रह वढाने लगो तो उससे अब्रह्मचर्य पाएगा ही। फिर अनधिकार की वस्तु प्राप्त करने का उत्साह भी आएगा। इसके आने पर असत्य के विना चारा ही नहीं रहेगा । ये सब इकट्ठे होकर जिस महा अनर्थ का सृजन करेगे उसके परिणाम मे हिमा ही होगी।
जो बात विश्व के लिए सही है वही व्यक्ति के लिए भी सही है। हम विश्व से भिन्न नही है । एक मनुष्य, इका, दुक्का मनुष्य भी यदि इन पाँचो आचारो का पालन करने लगे--कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध काव्यपक्ति (एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे, तोमार डाक शुनि कोई ना आशे तो एकला चलो रे) के अनुसार एक ही मनुष्य निश्चयपूर्वक इन पाँचो आचारो का पालन करने लगे तो उसके आस-पास चारो तरफ उसकी सौरभ जरूर फैलेगी। अन्य लोग विपरीत व्यवहार करते हो तो भी प्रत्येक समझदार मनुष्य को इन पाँचो प्राचारो का सपूर्णत पालन न हो सके तो-अगत पालन करने से प्रारभ करना ही चाहिए। क्योकि इसमे व्यक्ति का हित तो है ही, समस्त विश्व के कल्याण का १ तुम्हारी पुकार सुन कोई न आवे तो तुम अकेले ही चलो-अनुवादक ।