Book Title: Anekant va Syadvada
Author(s): Chandulal C Shah
Publisher: Jain Marg Aradhak Samiti Belgaon

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Page 408
________________ ३६० बताये गये है वे सात मुख्य नय है । उनके अतिरिक्त नय तो अनेक है, जितने वचन उतने नय है । सप्तभगी के सात भगो से सशयजनित जिज्ञासाम्रो की तृप्ति होती है। उदाहरणार्थ सग्रह और व्यवहार नय वस्तु के सामान्य तथा विशेष-ये दो स्वरूप बताते है, और उसके कितने ही अवान्तर गुण धर्मों के द्वारा वस्तु को देखते है, निरूपण करते है । सप्तभगी मे इनमे से किसी भी एक सामान्य या विशेष स्वरूप को लेकर उसका 'विशेप है', 'विशेष नहीं है' आदि विश्लेषण किया जा सकता है। ___ तात्पर्य यह है कि यदि नय और सप्तभगी का अन्तर भलीभाँति समझ लिया जाय तो बहुत सशय दूर हो जाते है। तिस पर भी 'भग सात ही किसलिए?' इस प्रश्न का उत्तर यह है कि आठवे प्रकार का कोई भग अभी तक कोई सशयकार नहीं बता सका है, क्योकि ऐसा कोई आठवॉ विकल्प ही नहीं है । केवल शका करके खडे रहने से किसी वस्तु का प्रतिपादन नही होता । यह तो एक निषेधात्मक-नकारात्मक (Negative) दुर्नीति है । कोई भी सूचन जब तक रचनात्मक (Constructive) ढग का न हो तब तक उसके खडन मडन में उतरना व्यर्थ का वित डावाद है। ' वैसे थोडे मे से बहुत देखा जा सकता है, यह बात समझने के लिए यदि हम जड वस्तुप्रो मे दूरवीन और चेतन वस्तुओ मे अपनी आँखो के विषय मे विचार करेगे तो बहुत कुछ समझ मे आ जायगा। प्रश्न-सात भगो मे से अन्तिम तीन मे 'है और प्रवक्तव्य है', 'नही है ओर अवक्तव्य है' तथा 'है और नहीं है और

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