Book Title: Anekant va Syadvada
Author(s): Chandulal C Shah
Publisher: Jain Marg Aradhak Samiti Belgaon

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Page 411
________________ ३६३ अन्य दर्शनो मे और जैन तत्त्वदर्शन मे एक विशिष्ट अन्तर यह है कि जैन दर्शन को छोड़ कर अन्य सभी दर्शन मात्र जैन दर्शन को झूठा बता कर ही नही रुक जाते, अपने मिवा अन्य सभी दर्शनो को वे झूठे मानते हैं। जब कि इसके विपरीत जैन दर्शन ने दूसरे मुख्य मुख्य तत्त्वज्ञानो को 'एकदम झूठ' नही माना । प्रत्येक दर्शन मे रहे हुए आशिक सत्य को जैन दर्शन ने स्वीकार किया है। पिछले पृष्ठो मे हम यह बता हो चुके है कि मुख्य मुख्य अजैन दर्शन 'स्यादवाद' के सात नयो मे से कौन कौन से एक एक नय पर आधारित है। ये सभी दर्शन एक एक नय ( वस्तु का एक सिरा ) पकड कर बैठ गये हैं, जब कि जैन दर्शन का अनेकान्तवाद उन सातो नयो के सयुक्त आधार पर खड़ा है । यही इसकी विशिष्टता है । इससे यह बात स्वय सिद्ध हो जाती है कि जैन धर्म हिन्दू धर्म या अन्य किसी भी धर्म की शाखा नहीं है। __ उसी तरह यह कहना भी युक्तियुक्त (Logical) नही है कि भिन्न भिन्न तत्त्वनानो का समन्वय करके अनेकान्तवाद के तत्वज्ञान की रचना की गई है। कपडे के थान मे से सात कोट सिल सकते है, परन्तु उन सातो कोटो को इकट्ठा करके एक थान नहीं बनाया जा सकता। इसके विपरीत क्रम मे, एक को सख्या में एक से विशेष कुछ नही होता। सात मे से एक निकाला जा सकता है, एक मे से एक निकालने पर तो शून्य ही रहता है। पिता पुत्र का क्रम ले तो, एक पिता से सात पुत्र उत्पन्न हो सकते है, परन्तु उन सातो पुत्रो को एकत्रित करने से एक पिता नही बन सकता। इस न्याय से-जैन तत्त्वज्ञान के अने

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