Book Title: Anekant va Syadvada
Author(s): Chandulal C Shah
Publisher: Jain Marg Aradhak Samiti Belgaon

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Page 417
________________ ३६६ जब हम कोई शव्द वोलते हैं तो उसमे से एक नाद और एक प्रभाव उत्पन्न होता है। वायु की तरंगे मुह मे से बाहर निकले हुए शब्दों को ग्रहण करती है और उसे सुनने वाले के कानो तक एव सारी दुनिया मे फलाती है । शब्द मे ने जो नाद (आवाज) उत्पन्न होता है, वह अपना प्रभाव भी उत्पन्न करता है । शब्द का नाद जहा जहा जाता है, वहाँ वहाँ उसका प्रभाव भी साथ ही जाता है । नुनने वाले मनुष्य के कान गब्द के नाद को झेलते हैं, और उसकी बुद्धि तथा हृदय शव्द के प्रभाव को झेलते हैं । शब्द के प्रभाव का ऋण एवं प्रमाण बोलने वाले व्यक्ति की गति तथा योग्यता पर अवलवित है । वह सुनने वाले की पात्रता पर भी निर्भर है । शब्द के अर्थ में जो गहनता तथा गभीरता होती है, उसकी मात्रा के अनुसार शब्द का प्रभाव भी न्यूनाधिक होता है । शब्द मनुष्य को हँसा सक्ते है, रुला सकते है, सुला सकते है, जगा सकते है । शव्द की अपनी शक्ति उसके अर्थ की शक्ति के साथ मिलकर ऐसे बहुत से कार्य करती है । जहाँ तक मंत्र का सम्बन्ध है उस मंत्र के अधिष्ठायक देवता के सामर्थ्य का शब्द के अर्थ मे वडा महत्त्व है । जिनको उद्देश कर मत्र रचा गया हो उसका नाम मंत्र के शब्दों मे याता ही है । अत जिसका नाम थाता है उनकी योग्यता का भी वडा महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसके पश्चात् मत्र की तीसरी शक्ति मंत्र का निर्माण करने वाले, मत्र तैयार करने वाले सम्पादक की 'सकल्प - शक्ति' है । मत्रसृष्टा अपने सकल्प-बल से शब्दो को अधिकृत वना कर

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