Book Title: Anekant va Syadvada
Author(s): Chandulal C Shah
Publisher: Jain Marg Aradhak Samiti Belgaon

View full book text
Previous | Next

Page 415
________________ नमस्कार महामंत्र ससार के सर्वश्रेष्ठ तत्त्वज्ञान का सक्षिप्त परिचय प्राप्त करने के बाद, जिस जैन धर्म के प्रवर्तको ने दुनिया को इस महान् तत्त्वज्ञान का उपहार दिया है, उम धर्म के एक परम कल्याणकारी इष्ट मत्र का उल्लेख किये विना ग्रन्थ को समाप्त कर देना किसी राजा को मुकुट पहनाये विना सिहासन पर बैठाने के समान होगा। यह इष्ट मत्र 'नमस्कार महामत्र' कहलाता है। यहा हमने 'मत्र' का निर्देश किया है, इसलिए मत्र के विषय मे थोडा सा विचार करना अप्रस्तुत नहीं होगा। ___ मानव जाति अनादि काल से सुख प्राप्ति के लिये अनन्त परिश्रम करती रही है । मनुष्य चिरकाल से अनन्य, अद्वितीय तथा महत्त्वपूर्ण सुख की खोज मे भटकता रहा है। ___इस सबके पीछे अविकसित मनुष्य का प्राथमिक हेतु भौतिक एवं सासरिक सुखसामग्री प्राप्त करना होता है। प्रेममयी पत्नी, प्यारे बच्चे, किलकिलाता हुआ परिवार, धन, वैभव और वज्र के समान दृढ शरीर आदि उसकी प्राप्ति के लक्ष्य होते है। इसके अतिरिक्त अपना नाम प्रख्यात हो, लोगो मे अपनी पूछ हो, पूजा हो अपने हाथो कोई सुयश का वडा कार्य हो, सत्ता तथा प्रभुता प्राप्त हो-ये सब चीजे भी मनुष्य की सुख प्राप्ति की इच्छा मे शामिल है। मनुप्य को इन सब शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक तथा अन्य बहुत सी भौतिक सिद्धियो के लिये अविरत प्रयत्न करते, मुसीवते झेलते और समाप्त हो जाते भी अनादि काल

Loading...

Page Navigation
1 ... 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437