Book Title: Anekant va Syadvada
Author(s): Chandulal C Shah
Publisher: Jain Marg Aradhak Samiti Belgaon

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Page 416
________________ ३६८ से दुनिया ने देखा है, इतिहासकारो ने उसका वर्णन किया है । ____ इस हेतु की प्राप्ति के लिये सभी प्राप्य साधनो का मनुष्य ने उपयोग किया है। इसके अतिरिक्त, सुख प्राप्ति में उपयोगी बन सके, ऐसे नये नये साधन खोजने तथा पैदा करने का भी मनुष्य ने अविरत प्रयत्न किया है। इन सब भिन्न-भिन्न साधनो में 'मत्र' के द्वारा सिद्धि प्राप्त करने का प्रयत्न भी मनुष्य अनात काल से करता आया है । चमत्कारपूर्ण मिद्धि दे सकने वाले विशिष्ट गव्दो अथवा गव्दसमूहो मे एव उनके विधि पूर्वक प्रयोगो मे मनुष्य अनन्य श्रद्धा रखता रहा है। 'मत्र' क्या है ? क्या इन मत्रो मे सचमुच ऐसी सिद्धिदायक गक्ति है जिसका मारोपण उनमे किया जाता है ? क्या इन मत्रो के पीछे कोई बुद्धिगम्य और वैज्ञानिक बल है, या यह कोई ऐसी वस्तु है जो मनुष्य की बुद्धि और समझ के परे है ? इन प्रश्नो का उत्तर पाने के लिये किसी भी मत्र में जो तीन अग महत्त्वपूर्ण होते हैं, हमे उनकी जाँच करनी चाहिए। ये तीन अग निम्नलिखित हैं - (१) शब्दो की शक्ति, (२) शब्दो का अर्थ और उस अर्थ की शक्ति, (३) उसके पीछे कार्य करने वाली मत्रसृष्टा की सकल्प शक्ति । अाज शब्दो की शक्ति के विषय मे तो कोई मतभेद नही है । शब्द मे अपरिमित शक्ति होती है । इसका अनुभव करने के बाद शब्दब्रह्मवादियो ने शब्द को भी 'शब्द ब्रह्म' नाम दिया है।

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