Book Title: Anekant va Syadvada
Author(s): Chandulal C Shah
Publisher: Jain Marg Aradhak Samiti Belgaon

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Page 394
________________ ३७६ दौड रही है। क्या यह सब पेट्रोल आदि स्फोटक पदार्थ लेकर आग बुझाने को जाते हुए पागल आदमी का सा व्यवहार नहीं मालूम होता? ___ आत्मा की मुक्ति की बात तो बहुत बड़ी है। यहाँ तो हम केवल भौतिक सुख की ही बात कर रहे है । जैन तीर्थकर भगवन्तो ने गृहस्थो-समारी मनुष्यो के पालन करने के जो पाँच आचार बताये है, उन्हे पालन किये विना मनुष्य जाति के लिए कोई चारा नहीं दिखाई देता-कोई उद्धार नही दिखाई देता । यदि इन पाँचो आचारो का पालन होने लगे तो युद्ध की आवश्यकता ही न रहे। परमाणु बम की आवश्यकता न रहे, और सेना की भी आवश्यकता न रहे । इस बात पर पूर्ण गभीरता से विचार कीजियेगा। ये पाँचो पालने योग्य अक्षत सिद्धान्त है। ये सब एक दूसरे से जुड़े हुए है । एक को छोडो तो दूसरा छूटने लगेगा एक को पकडने से दूसरा खिच कर आएगा। इनका अनुक्रम ऊपर से ले चाहे नीचे से, ये पाँचो सिद्धान्त अविभक्त एव एक है। पहले ऊपर से लेते है। हिसा छोडिए । फिर असत्य आचरण अपने आप छूटेगा । असत्य आचरण छूटने से चोरी छूट जाएगी । चोरी छूटने से अब्रह्म का आधार चला जाने से वह भी जाएगा । और यदि अब्रह्म छूट गया तो परिग्रह भी छूटेगा ही। अव नीचे से लेते है । परिग्रह छोडिये । इस कारण उत्पन्न होने वाली सादगी के कारण अब्रह्म के प्रति भी अरुचि होगी ही। अब्रह्म छूटने से चौर कर्म को अवकाश ही नही

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